मंगलवार, 24 नवंबर 2015

मंदिरों में रोजाना सुबह और शाम आरती के बाद भगवान का चरणामृत दिया जाता है।
चरणामृत का पानी हमेशा तांबे के बर्तन में रखने का विधान है, क्योंकि आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे में बहुत सारी बीमारियों को खत्म करने की ताकत होती है। इसका पानी स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
इसमें तुलसी डालने के पीछे यह मान्यता है कि तुलसी का पत्ता महाऔषधि है। इसमें न केवल बीमारियों को खत्म करने के गुण होते हैं, बल्कि कीटाणुओं को मारने की शक्ति भी होती है।
जिन्हें भगवान मे पूरी श्रृद्धा और विश्वास होता है। उनके लिए इस पानी का सेवन अमृत जैसा गुणकारी होता है।
संत तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है
पद पखारि जलपान करि,आपु सहित परिवार।
पितर पार करि प्रभुहिं पुनि,मुदित गयउ लै पार।।
यानी भगवान श्रीराम के चरण धोकर और उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार करके केवट न केवल खुद बाधा से पार हो गया, बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया।
नारदपुराण में चरणामृत का महत्व इस तरह बताया गया है
पाप व्याधिविनाशार्थ विष्णुपादोदकौषधम्।
तुलसीदल सम्मिश्रं जलं सर्वपमात्रकम्।।
पाप और रोग दूर करने के लिए भगवान का चरणामृत एक दवा के समान है। यदि उसमें तुलसी के पत्ते भी मिला दिए जाएं, तो उसके गुण में और भी ज्यादा बढ़ोतरी हो जाती है।
चरणामृत पीते समय यहां बताया गया श्लोक पढ़ना चाहिए
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
विष्णुपदोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।।
यानी चरणामृत अकाल मृत्यु को दूर करता है। सभी तरह की बीमारियों का नाश करता है। इसके सेवन से पुर्नजन्म नहीं होता और भवबंधन कट जाते हैं।
इस तरह देखें तो भगवान का चरणामृत भक्तों के सभी तरह के दुख और रोगों का नाश होता है। इसलिए वे इसे ग्रहण कर खुद को धन्य समझते हैं।
जय श्री राम

भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
मो. 0917891529862