रविवार, 6 दिसंबर 2015

माता सीता को एक गर्भवती के श्राप ने भगवान श्री राम जी से दूर कर दिया...




माता सीता को एक गर्भवती के श्राप ने भगवान श्री राम जी से दूर कर दिया...
विवाह से पूर्व सीता की महत्वाकांक्षा ने नष्ट कर दी भगवान श्री राम जी की खुशियां... वह गर्भवती कौन थी.. जिसने श्राप दिया...
धर्म हमें सच्चाई के मार्ग पर चलना सिखाता है. सनातन धर्म में दूसरों को पीड़ा पहुँचाने को पाप और परोपकार को पुण्य माना गया है. इस धर्म से जुड़ी किंवदन्तियाँ यह बताती है कि ईश्वर को भी अपनी गलती की सजा भोगनी पड़ती है.
ऐसी ही एक किंवदन्ती है जो बताती है कि दशरथ वधू माता सीता द्वारा जब किसी को तड़पाया गया तो उन्हें उसकी सजा भोगनी पड़ी थी.
इस घटना को बहुत कम लोग ही जानते हैं. किस गर्भवती को तड़पाया था माँ सीता ने? किसने दिया था माता सीता को श्राप? माता सीता को उस श्राप की कौन सी सजा मिली थी?
सीता मिथिला नरेश जनक की पुत्री थी. एक दिन उद्यान(बगीचे) में खेलते हुए कन्या सीता को एक नर व मादा तोते का जोड़ा दिखाई पड़ा. वो दोनों आपस में बातें कर रहे थे.
वो जोड़ा ये बात कर रहे थे कि भूमंडल में राम नाम का बड़ा प्रतापी राजा होगा जिसकी अत्यंत सुंदर पत्नी सीता होगी. उत्सुकता वश सीता अपने को रोक ना सकी और उनकी बातें सुनने लगी.
उन्हें अपने ब्याह के बारे में सुन अच्छा लग रहा था. इसी उमंग में उन्होंने बातचीत में मग्न तोते के उस जोड़े को पकड़वा लिया.
माता सीता उनसे अपने और श्रीराम के बारे में और भी बातें सुनना चाहती थी इसलिए उन्होंने उस जोड़े से पूछा कि उन्हें राम और उसके विवाह के बारे में ये बातें कहाँ से पता चली. तोते ने कहा कि उन्होंने ये बात महर्षि वाल्मीकि के मुख से उनके आश्रम में शिष्यों को पढ़ाते वक्त सुनी.
इस पर माता सीता ने कहा कि ‘’तुम जनक की जिस पुत्री के बारे में बात कर रहे हो वो मैं ही हूँ. तुम्हारी बातें मुझे रोमांचित कर रही है इसलिए अब मैं तुम्हें तब छोड़ूँगी जब मेरा विवाह श्रीराम से हो जाएगा.’’
तोते ने याचना करते हुए कहा कि ‘’हे देवी! हम पक्षी हैं जिसे घर में सुख नहीं मिल सकता है. हमारा काम ही आसमान में विचरण करना है.’’ माता सीता ने नर तोते को आज़ाद कर दिया और कहा कि ‘’ठीक है तुम सुखपूर्वक विचरो, परंतु तुम्हारी पत्नी को मैं तब छोड़ूँगी जब मुझे राम प्राप्त हो जाएँगे.’’
नर तोते ने फिर गिड़गिड़ाते हुए कहा हे सीते मेरी यह पत्नी गर्भ से है. मैं इसका वियोग सह ना पाऊँगा. कन्या सीता ने फिर भी मादा तोते को नहीं छोड़ा. इस पर क्रोध में आकर मादा तोते ने सीता को श्राप दिया कि ‘’जैसे तू मेरी गर्भावस्था में मेरे पति से मुझे दूर कर रही है उसी प्रकार तुझे भी अपनी गर्भावस्था में अपने राम का वियोग सहना पड़ेगा.’’
इतना कहते ही मादा तोते ने प्राण त्याग दिया. कुछ समय बाद उसके वियोग में व्यथित नर तोते ने भी अपने प्राण त्याग दिए. सालो बाद इसी श्राप के कारण ही माता सीता को श्रीराम ने उनकी गर्भावस्था के दैरान ही वन में भेज दिया था.
भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
मो. 0917891529862

मंगलवार, 24 नवंबर 2015

मंदिरों में रोजाना सुबह और शाम आरती के बाद भगवान का चरणामृत दिया जाता है।
चरणामृत का पानी हमेशा तांबे के बर्तन में रखने का विधान है, क्योंकि आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे में बहुत सारी बीमारियों को खत्म करने की ताकत होती है। इसका पानी स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
इसमें तुलसी डालने के पीछे यह मान्यता है कि तुलसी का पत्ता महाऔषधि है। इसमें न केवल बीमारियों को खत्म करने के गुण होते हैं, बल्कि कीटाणुओं को मारने की शक्ति भी होती है।
जिन्हें भगवान मे पूरी श्रृद्धा और विश्वास होता है। उनके लिए इस पानी का सेवन अमृत जैसा गुणकारी होता है।
संत तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है
पद पखारि जलपान करि,आपु सहित परिवार।
पितर पार करि प्रभुहिं पुनि,मुदित गयउ लै पार।।
यानी भगवान श्रीराम के चरण धोकर और उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार करके केवट न केवल खुद बाधा से पार हो गया, बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया।
नारदपुराण में चरणामृत का महत्व इस तरह बताया गया है
पाप व्याधिविनाशार्थ विष्णुपादोदकौषधम्।
तुलसीदल सम्मिश्रं जलं सर्वपमात्रकम्।।
पाप और रोग दूर करने के लिए भगवान का चरणामृत एक दवा के समान है। यदि उसमें तुलसी के पत्ते भी मिला दिए जाएं, तो उसके गुण में और भी ज्यादा बढ़ोतरी हो जाती है।
चरणामृत पीते समय यहां बताया गया श्लोक पढ़ना चाहिए
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
विष्णुपदोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।।
यानी चरणामृत अकाल मृत्यु को दूर करता है। सभी तरह की बीमारियों का नाश करता है। इसके सेवन से पुर्नजन्म नहीं होता और भवबंधन कट जाते हैं।
इस तरह देखें तो भगवान का चरणामृत भक्तों के सभी तरह के दुख और रोगों का नाश होता है। इसलिए वे इसे ग्रहण कर खुद को धन्य समझते हैं।
जय श्री राम

भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
मो. 0917891529862

बुधवार, 14 अक्टूबर 2015

देसी गौ दूध

देसी गौ दूध : – गौदुग्ध को आहार शास्त्रियों ने सम्पूर्ण आहार माना है और पाया है। अनेक देशों की चिकित्सीय प्रयोगशालाओं में ये सिद्ध हुआ है कि यदि नवजात शिशु को माँ के दूध के अतिरिक्त देसी गाय का ही दूध पिलाया जाए तो यह उसके लिए बहुत लाभदायक है, देसी गाय का दूश अनेक प्रकार के कैंसर और एड्स जैसे जानलेवा रोगों का नाश करने की अद्भुत क्षमता रखता है, यदि मनुष्य केवल गाय के दूध का ही सेवन करता रहे तो उसका शरीर व जीवन न केवल सुचारू रूप से चलता रहेगा वरन् वह अन्य लोगों की अपेक्षा सशक्त और रोग प्रतिरोधक क्षमता से संपन्न हो जाएगा। मानव शरीर के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व इसमें होते हैं। गाय के एक पौण्ड दूध से इतनी शक्ति मिलती है, जितनी की 4 अण्डों और 250 ग्राम मांस से भी प्राप्त नहीं होती। देशी गाय के दूध में विटामिन ए-2 होता है जो कि कैंसरनाशक है, जबकि जर्सी(विदेशी) गाय के दूध में विटामिन ए-1 होता है जो कि कैंसरकारक है। भैंस के दूध की तुलना में भी गौदुग्ध अत्यन्त लाभकारी है।
दस्त या आंव हो जाने पर ठंडा गौदुग्ध(1 गिलास) में एक नींबू निचोडक़र तुरन्त पी जावें। चोट लगने आदि के कारण शरीर में कहीं दर्द हो तो गर्म दूध में हल्दी मिलाकर पीवें। टी.बी. के रोगी को गौदुग्ध पर्याप्त मात्रा में दोनों समय पिलाया जाना चाहिए।

भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
मो. 0917891529862

गुरुवार, 8 अक्टूबर 2015

कौन थे राजा वीर विक्रमादित्य..... ????

कौन थे राजा वीर विक्रमादित्य..... ????



 





(कुतुबमीनार-राजा विक्रमादित्य द्वारा बनवाया गया …. “”हिन्दू नक्षत्र निरीक्षण केंद्र”” है…)
बड़े ही शर्म की बात है कि महाराज विक्रमदित्य के बारे में देश को लगभग शून्य बराबर ज्ञान है, जिन्होंने भारत को सोने की चिड़िया बनाया था, और स्वर्णिम काल लाया था
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उज्जैन के राजा थे गन्धर्वसैन , जिनके तीन संताने थी , सबसे बड़ी लड़की थी मैनावती , उससे छोटा लड़का भृतहरि और सबसे छोटा वीर विक्रमादित्य...
बहन मैनावती की शादी धारानगरी के राजा पदमसैन के साथ कर दी , जिनके एक लड़का हुआ गोपीचन्द , आगे चलकर गोपीचन्द ने श्री ज्वालेन्दर नाथ जी से योग दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए , फिर मैनावती ने भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग दीक्षा ले ली ,
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आज ये देश और यहाँ की संस्कृति केवल विक्रमदित्य के कारण अस्तित्व में है
अशोक मौर्य ने बोद्ध धर्म अपना लिया था और बोद्ध बनकर 25 साल राज किया था
भारत में तब सनातन धर्म लगभग समाप्ति पर आ गया था, देश में बौद्ध और जैन हो गए थे
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रामायण, और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो गए थे, महाराज विक्रम ने ही पुनः उनकी खोज करवा कर स्थापित किया
विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाये और सनातन धर्म को बचाया
विक्रमदित्य के 9 रत्नों में से एक कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् लिखा, जिसमे भारत का इतिहास है
अन्यथा भारत का इतिहास क्या मित्रो हम भगवान् कृष्ण और राम को ही खो चुके थे
हमारे ग्रन्थ ही भारत में खोने के कगार पर आ गए थे,
उस समय उज्जैन के राजा भृतहरि ने राज छोड़कर श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग की दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए , राज अपने छोटे भाई विक्रमदित्य को दे दिया , वीर विक्रमादित्य भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से गुरू दीक्षा लेकर राजपाट सम्भालने लगे और आज उन्ही के कारण सनातन धर्म बचा हुआ है, हमारी संस्कृति बची हुई है
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महाराज विक्रमदित्य ने केवल धर्म ही नही बचाया
उन्होंने देश को आर्थिक तौर पर सोने की चिड़िया बनाई, उनके राज को ही भारत का स्वर्णिम राज कहा जाता है
विक्रमदित्य के काल में भारत का कपडा, विदेशी व्यपारी सोने के वजन से खरीदते थे
भारत में इतना सोना आ गया था की, विक्रमदित्य काल में सोने की सिक्के चलते थे ।
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हिन्दू कैलंडर भी विक्रमदित्य का स्थापित किया हुआ है
आज जो भी ज्योतिष गणना है जैसे , हिन्दी सम्वंत , वार , तिथीयाँ , राशि , नक्षत्र , गोचर आदि उन्ही की रचना है , वे बहुत ही पराक्रमी , बलशाली और बुद्धिमान राजा थे ।
कई बार तो देवता भी उनसे न्याय करवाने आते थे ,
विक्रमदित्य के काल में हर नियम धर्मशास्त्र के हिसाब से बने होते थे, न्याय , राज सब धर्मशास्त्र के नियमो पर चलता था
विक्रमदित्य का काल राम राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है, जहाँ प्रजा धनि और धर्म पर चलने वाली थी
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पर बड़े दुःख की बात है की भारत के सबसे महानतम राजा के बारे में अंग्रेजी मानसिकता के गुलाम शासको के शासनकाल में लिखित इतिहास भारत की जनता को शून्य ज्ञान देता है, कृपया आप शेयर तो करें ताकि देश जान सके कि सोने की चिड़िया वाला देश का राजा कौन था ?
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जय हिन्द-वंदे मातरम् । —

भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
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गुरुवार, 1 अक्टूबर 2015

आयुर्वेद

आयुर्वेद
हार्ट अटैक: ना घबराये ……!!!
सहज सुलभ उपाय ….
99 प्रतिशत ब्लॉकेज को भी रिमूव कर देता है पीपल
का पत्ता….
पीपल के 15 पत्ते लें जो कोमल गुलाबी कोंपलें न हों,
बल्कि पत्ते हरे, कोमल व भली प्रकार विकसित हों। प्रत्येक
का ऊपर व नीचे का कुछ भाग कैंची से काटकर अलग कर दें।
पत्ते का बीच का भाग पानी से साफ कर लें। इन्हें एक गिलास
पानी में धीमी आँच पर पकने दें। जब पानी उबलकर एक तिहाई
रह जाए तब ठंडा होने पर साफ कपड़े से छान लें और उसे ठंडे
स्थान पर रख दें, दवा तैयार।
इस काढ़े की तीन खुराकें बनाकर प्रत्येक तीन घंटे बाद
प्रातः लें। हार्ट अटैक के बाद कुछ समय हो जाने के पश्चात
लगातार पंद्रह दिन तक इसे लेने से हृदय पुनः स्वस्थ
हो जाता है और फिर दिल का दौरा पड़ने
की संभावना नहीं रहती। दिल के रोगी इस नुस्खे का एक बार
प्रयोग अवश्य करें।
* पीपल के पत्ते में दिल को बल और शांति देने की अद्भुत
क्षमता है।
* इस पीपल के काढ़े की तीन खुराकें सवेरे 8 बजे, 11 बजे व
2 बजे ली जा सकती हैं।
* खुराक लेने से पहले पेट एक दम खाली नहीं होना चाहिए,
बल्कि सुपाच्य व हल्का नाश्ता करने के बाद ही लें।
* प्रयोगकाल में तली चीजें, चावल आदि न लें। मांस, मछली,
अंडे, शराब, धूम्रपान का प्रयोग बंद कर दें। नमक, चिकनाई
का प्रयोग बंद कर दें।
* अनार, पपीता, आंवला, बथुआ, लहसुन, मैथी दाना, सेब
का मुरब्बा, मौसंबी, रात में भिगोए काले चने, किशमिश,
गुग्गुल, दही, छाछ आदि लें । ……
तो अब समझ आया, भगवान ने पीपल के पत्तों को हार्टशेप क्यों बनाया.....?
किशन लाल डांगी
भमावत
थूर उदयपुर मेवाड़
मो 0917891529862

रविवार, 27 सितंबर 2015

अनेक सनातन धर्मावलम्बी सोमरस को अल्कोहल समझते है जब की वेदों में वर्णित सोमरस अल्कोहल नहीं है सोमरस को अल्कोहल कहने वाले महामूर्ख है ऋग्वेद के प्रथम मंडल के सूक्त 135 की ऋचा 1499 में स्पष्ट वर्णन है की सोमरस एक औषधि है जिसे पर्वतो से प्राप्त किया जाता था एवम् इसमें गऊ का दुग्ध जौ अदि मिला कर देवताओ को अर्पित किया जाता था अब आप ही बताये की दुनिया की कौन सी अल्कोहल पर्वतो से प्राप्त होती है और कौन सी अल्कोहल में गऊ का दुग्ध ,जौ ,दही अदि मिलाकर पिया जाता है अतः स्पस्ट है कि सोमरस एक औषधीय पेय है न की अल्कोहल ।


भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
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प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े फायद

14 प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े फायद
पुराने समय से बहुत सी परंपराएं प्रचलित हैं, जिनका पालन आज भी काफी लोग कर रहे हैं। ये परंपराएं धर्म से जुड़ी दिखाई देती हैं, लेकिन इनके वैज्ञानिक कारण भी हैं। जो लोग इन परंपराओं को अपने जीवन में उतारते हैं, वे स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियों से बचे रहते हैं। यहां जानिए ऐसी ही 14 खास परंपराएं, जिनका पालन अधिकतर परिवारों में किया जाता है…
1. एक ही गोत्र में शादी नहीं करना
Ancient Hindu Traditions & Benefits
कई शोधों में ये बात सामने आई है कि व्यक्ति को जेनेटिक बीमारी न हो इसके लिए एक इलाज है ‘सेपरेशन ऑफ़ जींस’, यानी अपने नजदीकी रिश्तेदारो में विवाह नहीं करना चाहिए। रिश्तेदारों में जींस सेपरेट (विभाजन) नहीं हो पाते हैं और जींस से संबंधित बीमारियां जैसे कलर ब्लाईंडनेस आदि होने की संभावनाएं रहती हैं। संभवत: पुराने समय में ही जींस और डीएनए के बारे खोज कर ली गई थी और इसी कारण एक गोत्र में विवाह न करने की परंपरा बनाई गई।
2. चूड़ियों का महत्व
पुराने समय मे ज्यादातर महिलाये सोने-चांदी की चूड़ियाँ पहना करती थी माना जाता है की सोने-चांदी के घर्षण से शरीर को इनके शक्तिशाली तत्व प्राप्त होते हैं, जिससे महिलाओं को स्वास्थ्य लाभ मिलता है। महिलाये पुरुषों से कमजोर होती है | चूड़ियाँ उनके हाथो को मजबूत और शक्तिशाली बनती है
3. सिंदूर लगाना
Sindur Khela During Hindu Festival Durga Puja
Source
सिंदूर हल्दी, नींबू और पारा के मिश्रण से तैयार किया जाता है। सिंदूर महिला के रक्तचाप को नियंत्रित करने के अलावा उनकी सेक्सुअल ड्राइव को भी बढाता है। इसे उस जगह पर लगाया जाता है , जहां पर पिट्यूटरी ग्रंथि होती है, जहां पर सारे हार्मोन डेवलप होते हैं। इसके अलावा सिंदूर तनाव से भी महिलाओं को दूर रखता है।
4. बच्चों का कान छेदन
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Source
विज्ञान कहता है कि कर्णभेद से मस्तिष्क में रक्त का संचार समुचित प्रकार से होता है। इससे बौद्घिक योग्यता बढ़ती है। और बच्चो के चेहरे पर चमक आती है | इसके कारण बच्चा बेहतर ज्ञान प्राप्त कर लेता है
5 पाव छूना और ज़मीन पर बैठ कर भोजन करना
Langar
Source
बड़ो ले चरण स्पर्श करने से रक्त पवाह सर की तरफ होता है और इस तरह से चरणर्-स्पश करने से अपने से बड़ों की विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति हमारे शरीर को नयी ऊर्जा प्रदान कर ऊर्जावान, निरोगी और सकारात्मक विचारों से परिपूर्ण कर देती है। सुखासन से पूरे शरीर में रक्त-संचार समान रूप से होने लगता है। जिससे शरीर अधिक ऊर्जावान हो जाता है।तथा पृथ्वी की ऊर्जा भी भोजन के साथ हमतक पहुचती है।
6. हाथों में मेहंदी लगाना
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Source
विज्ञान कहता है की मेंहदी बहुत ठंडी होती है इस लगाने से दिमाग ठंडा रहता है और तनाव भी कम होता है इसलिये शादी के दिन दुल्‍हने मेंहदी लगाती हैं, जिससे उन्‍हें शादी का तनाव ना हो पाए।
7. सर पे चोटी रखना
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सिर पर चोंटी रखने की परंपरा को हिन्दुत्व की पहचान तक माना जाता है । असल में जिस स्थान पर शिखा यानि कि चोंटी रखने की परंपरा है, वहा पर सिर के बीचों-बीच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है।सुषुम्रा नाड़ी इंसान के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चोटी सुषुम्रा नाड़ी को हानिकारक प्रभावों से बचाती है
8. भोजन के अंत में मिठाई खाना
Source
जब हम कुछ मसालेदार भोजन खाते हैं, तो हमारे शरीर एसिड बने लगता है जिससे हमारा खाना पचता है और यह एसिड ज्यादा ना बने इसके लिए आखिर में मिठाई खाई जाती है जो पाचन प्रक्रिया शांत करती है।
9. तुलसी के पेड़ की क्यों पूजा होती है.
Tulsi
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तुलसी में विद्यमान रसायन वस्तुतः उतने ही गुणकारी हैं, जितना वर्णन शास्रों में किया गया है। यह कीटनाशक है, कीटप्रतिकारक तथा खतरनाक जीवाणुनाशक है। विशेषकर एनांफिलिस जाति के मच्छरों के विरुद्ध इसका कीटनाशी प्रभाव उल्लेखनीय है।
10. पीपल के वृक्ष की पूजा
piple
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पीपल की उपयोगिता और महत्ता वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनों कारणों से है। यह वृक्ष अन्य वृक्षों की तुलना में वातावरण में ऑक्सीजन की अधिक-से-अधिक मात्रा में अभिवृद्धि करता है। यह प्रदूषित वायु को स्वच्छ करता है और आस-पास के वातावरण में सात्विकता की वृद्धि भी करता है। इसके संसर्ग में आते ही तन-मन स्वतः हर्षित और पुलकित हो जाता है। यही कारण है कि इस वृक्ष के नीचे ध्यान एवं मंत्र जप का विशेष महत्व है।


भमावत 
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महाराणा प्रताप के बेटे अमर सिंह ने युद्ध में मुगल
सेनापति अब्दुल रहीम खां को परास्त कर दिया।
फिर उन्होंने मुगल सरदारों के साथ ही मुगलों के
हरम को भी कब्जे में ले लिया।
महाराणा प्रताप को जब यह समाचार
मिला तो वह रुग्णावस्था में ही युद्ध क्षेत्र में
जाकर अमर सिंह पर गरज पड़े, 'ऐसा नीच काम करने
से पहले तू मर क्यों नहीं गया! हमारी भारतीय
संस्कृति को कलंकित करते तुझे लाज न आई?
अमर सिंह पिता के सामने लज्जित खड़े रहे।
महाराणा प्रताप ने तत्काल मुगल हरम में पहुंचकर
बड़ी बेगम को प्रणाम करते हुए
कहा,'बड़ी साहिबा, जो सिर शहंशाह अकबर के
सामने नहीं झुका, वह आपके सामने झुकाता हूं।
मेरे बेटे से जो अपराध हुआ, उसे क्षमा करें। हमारे
लिए स्त्री पूजनीय है, आप
लोगों को बंदी बनाकर उसने
हमारी संस्कृति का अपमान किया है।'
उधर शहंशाह अकबर ने जब मुगल हरम की चिंता करते
हुए सेनापति अब्दुल रहीम
खां को फटकारा तो उसने बादशाह को आश्वस्त
करते हुए कहा, 'बेगम वहां उसी तरह महफूज हैं, जिस
तरह शाही महल में रहती हैं।'
इस पर अकबर ने कहा, 'पर महाराणा प्रताप से
हमारी जंग चल रही है।' इस पर सेनापति बोले,'
बादशाह सलामत, महाराणा प्रताप
हिंदुस्तानी संस्कृति के रक्षक हैं, वह बेगम को कुछ न
होने देंगे।' शहंशाह अकबर शांत तो हुए मगर
उनकी फिक्र कम न हुई।
जब दूसरे दिन राजपूत सैनिकों की कड़ी सुरक्षा में
राजकीय सम्मान के साथ
शाही बेगमों की पालकी आगरा के किले में
पहुंची तो बादशाह अकबर ने कहा,
'महाराणा प्रताप जैसा राजा इतिहास में कम
ही पैदा होता है। वे हिंदुस्तानी तहजीब के
भी सच्चे रखवाले हैं।

         जय एकलिंग जी
☆जय महाराणा प्रताप सिंह☆


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गुरुवार, 17 सितंबर 2015

कलियुग तूं कैसा है??
बिल्कुल "काला- युग "जैसा है।
"भारत" कलियुग में इंडिया बन गया ।
"सदाचारी" देश अब भ्रष्टाचारी बन गया ।।
नहीं सोचा कभी ये दशा होगी हमारी ।
सदाचारी की जगह पैदा होगा बलात्कारी।।
सीता सावित्री भी तब रोई होगी।
"दामिनी" जब ऊपर गई होगी ।।
अब तो ५ वर्ष की "गुडिया" भी रोती है ।
जीवन और मौत के बारे में सोचती है।।
हमने "हनुमान- ब्रह्मचारी" की कथा पढ़ी है।
किंतु कलियुग ने तो बलात्कारी की कथा गढ़ी है।।
कलियुग के बारे में सुना था मैने लेक्चर ।
लेकिन अब तो कलियुग ने दिखा दी अपनी पिक्चर।।
लेकिन परिवर्तन संसार का नियम है जानते है हम ।
फिर से इंडिया को भारत बनायेंगे बाजुअों में है दम ।।
अब भ्रष्टाचार का नामो-निशान नहीं होगा।
विश्व का गुरु पुन: मेरा हिंदुस्तान होगा ।।

भमावत 
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मंगलवार, 15 सितंबर 2015

गाय प्रश्नोतरी ????

गाय प्रश्नोतरी ????
* भगवान कृष्ण ने किस ग्रंथ में कहा है ‘धेनुनामसिम’ मैं गायों में कामधेनु हूं?
- श्रीमद् भगवतगीता |
* ‘चाहे मुझे मार डालो पर गाय पर हाथ न उठाओ’ किस महापुरुष ने कहा था?
- बाल गंगाधर तिलक |
* रामचंद्र ‘बीर’ ने कितने दिनों तक गौहत्या पर रोक लगवाने के लिए अनशन किया?
-- 70 दिन |
* पंजाब में किस शासक के राज्य में गौ हत्या पर मृत्यु दंड दिया जाता था?
-- पंजाब केसरी महाराज रणजीत सिंह |
* गाय के घी से हवन पर किस देश में वैज्ञानिक प्रयोग किया गया?
-- रूस |
* गोबर गैस संयंत्र में गैस प्राप्ति के बाद बचे पदार्थ का उपयोग किस में होता है?
-- खेती के लिए जैविक (केंचुआ) खाद बनाने में |
* मनुष्य को गौ-यज्ञ का फल किस प्रकार होता है?
-- कत्लखाने जा रही गाय को छुड़ाकर उसके पालन-पोषण की व्यवस्था करने पर |
* एक तोला (10 ग्राम) गाय के घी से यज्ञ करने पर क्या बनता है?
- एक टन आँक्सीजन |
* प्रसिद् मुस्लिम संत रसखान ने क्या अभिलाषा व्यक्त की थी?
-- यदि पशु के रूप में मेरा जन्म हो तो मैं बाबा नंद की गायों के बीच में जन्म लूं |
* पं. मदन मोहन मालवीय जी की अंतिम इच्छा क्या थी?
-- भारतीय संविधान में सबसे पहली धारा सम्पूर्ण गौवंश हत्या निषेध की बने |
* भगवान शिव का प्रिय श्री सम्पन्न ‘बिल्वपत्र’ की उत्पत्ति कहा से हुई है?
-- गाय के गोबर से |
* गौवंशीय पशु अधिनियम 1995 क्या है?
-- 10 वर्ष तक का कारावास और 10,000 रुपए तक का जुर्माना |
* गाय की रीढ़ में स्थित सुर्यकेतु नाड़ी से क्या होता है?
-- सर्वरोगनाशक, सर्वविषनाशक होता है |
* देशी गाय के एक ग्राम गोबर में कम से कम कितने जीवाणु होते है?
-- 300 करोड़ |
* गाय के दूध में कौन-कौन से खनिज पाए जाते है?
-- कैलिशयम 200 प्रतिशत, फास्फोरस 150 प्रतिशत, लौह 20 प्रतिशत, गंधक 50 प्रतिशत, पोटाशियम 50 प्रतिशत, सोडियम 10 प्रतिशत, पाए जाते है |
* ‘गौ सर्वदेवमयी और वेद सर्वगौमय है’, यह युक्ति किस पुराण की है?
-- स्कन्द पुराण |
* विश्व की सबसे बड़ी गौशाला का नाम बताइए?
-- पथमेड़ा, राजस्थान |
* गाय के दूध में कौन-कौन से विटामिन पाए जाते है?
-- विटामिन C 2 प्रतिशत, विटामिन A (आई.क्यू) 174 और विटामिन D 5 प्रतिशत |
* यदि हम गायों की रक्षा करेंगे तो गाय हमारी रक्षा करेंगी ‘यह संदेश किस महापरुष का है?
-- पंडित मदन मोहन मालवीय का |
* ‘गौ’ धर्म, अर्थ, काम और
मोक्ष की धात्री होने के कारण कामधेनु है| इसका अनिष्ट चिंतन ही पराभव का कारण है| यह विचार किनका था?
-- महर्षि अरविंद का |
* भगवान बालकृष्ण ने गायें चराने का कार्य किस दिन से प्रारम्भ किया था?
-- गोपाष्टमी से |
* श्री राम ने वन गमन से पूर्व किस ब्राह्मण को गायें दान की थी?
-- त्रिजट ब्राह्मण को |
* ‘जो पशु हां तों कहा बसु मेरो, चरों चित नंद की धेनु मंझारन’ यह अभिलाषा किस मुस्लिम कवि की है?
-- रसखान |
* ‘यही देहु आज्ञा तुरुक को खापाऊं, गौ माता का दुःख सदा मैं मिटआऊँ‘ यह इच्छा किस गुरु ने प्रकट की?
- गुरु गोबिंद सिंह जी ने |

जय गौ माँ

भमावत 
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चलता रहा हुं अग्निपथ पर...चलता चला जाऊँगा...
हिन्दू बन कर जन्म लिया मैंने...हिन्दू बन कर ही मर जाऊंगा.
श्री राम की संतान हूँ...रुकना मैंने सीखा नहीं...
महाकाल का भक्त हूँ...झुकना मैंने सीखा नही...
ह्रदय में जो धड़क रहा है...वो धड़कन तेरे नाम का...
रगो में जो बह रहा है...वो लहू है श्री राम का.....
  ॥ जय श्री  ॥

भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
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भूत-प्रेतो को निमंत्रण देता है घर के फ्रिज में रखा हुआ आटा ।

भूत-प्रेतो को निमंत्रण देता है घर के
फ्रिज में रखा हुआ आटा ।
वर्तमान में बहुत सी गृहिणियां खाना
बनाते समय रात को बचा हुआ अतिरिक्त
आटा गोल लोई बनाकर उसे फ्रिज में रख
देती है और उसका प्रयोग अगले दिन करती
है। कई बार सुबह के समय भी आटा बचने पर
ऎसा ही किया जाता है। धर्मशास्त्रों
के अनुसार गूंथा हुआ आटा पिण्ड माना
जाता है जिसे मृतात्मा के भक्षण के
लिए अर्पित किया जाता है।
जिन भी घरों में लगातार या अक्सर
गूंथा हुआ आटा फ्रिज में रखने की
परंपरा बन जाती है वहां पर भूत, प्रेत
तथा अन्य ऊपरी हवाएं भोजन करने के लिए
आने लग जाती है। इनमें अधिकतर वे
आत्माएं होती है जिन्हें उनके
घरवालों ने भुला दिया या जिनकी अब
तक मुक्ति नहीं हो सकी है। ऎसी
आत्माओं के घर में आने के साथ ही घर
में अनेकों समस्याएं भी आनी शुरू हो
जाती हैं।
बचे हुए आटे को इस तरह रखने वाले सभी
घरों में किसी न किसी प्रकार के
अनिष्ट देखने को मिलते हैं। वहां
अक्सर बीमारियां, क्रोध, आलस आदि बने
रहते हैं और घर में रहने वालों की भी
तरक्की नहीं हो पाती है।
शास्त्रों के अनुसार ऎसे किसी भी
चीज को घर में स्थान नहीं देना चाहिए
जो मृतात्माओं का भोजन हो अथवा
उन्हें किसी भी प्रकार से आमंत्रित
करने की क्षमता रखती हो। इसके ही रात
के बासी बचे आटे से रोटी बनाना शरीर
के लिए भी नुकसानदेह होता है। ऎसा
भोजन तामसिकता को तो बढ़ावा देता
ही है साथ में शरीर को भी रोगों का घर
बना देता है जबकि ताजा बना भोजन शरीर
को स्फूर्ति, शक्ति और स्वास्थ्य
देता है। इन सभी चीजों को देखते हुए
हमें घर में बासी आटा नही रखना चहिये ।

भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
मो. 0917891529862

सोमवार, 14 सितंबर 2015

अंग्रेज ने पूछा:
"भारतीय स्त्रियाँ हाथ क्यों नहीं मिलाती हैं, इसमें कुछ भी नुकसान नहीं है..."
स्वामी विवेकानंद जी ने जवाब दिया:
"क्या आपके देश में कोई साधारण व्यक्ति आपकी महारानी (Queen) से हाथ मिला सकता है???"
अंग्रेज: "नहीं"
स्वामी विवेकानंद: "हमारे देश में हर एक स्त्री महारानी (Queen) होती है।"
देखा ना वीर हनुमान जैसा,
1.
तीर्थ ना देखा प्रयाग जैसा,
नाग नहीं कोई शेषनाग जैसा,
चिन्ह नहीं कोई सुहाग जैसा,
तेज नहीं कोई भी आग जैसा,
अरे जल नहीं कोई गंगाजल जैसा,
फूल नहीं कोई कमल जैसा,
शैला नहीं कोई गरल जैसा,
आज नहीं बिन देखा कल जैसा,
पर देखा ना वीर हनुमान जैसा
2.
पूरब से सूरज निकलता
नभ लालिमा से लजाये,
लाल जोड़े में दुल्हनिया
जैसे घूँघट में शरमाये।।।
अवतारी नहीं कोई राम जैसा,
पितृभक्त नहीं परशुराम जैसा,
छलिया नहीं घनश्याम जैसा,
धाम नहीं विष्णु के धाम जैसा,
पर देखा ना वीर हनुमान जैसा
3.
व्रत नहीं कोई निराहार जैसा,
प्यार नहीं माता के प्यार जैसा,
शस्त्र नहीं कोई तलवार जैसा,
पुत्र नहीं श्रवण कुमार जैसा,
पर देखा ना वीर हनुमान जैसा।।।
4.
है ग्यारहवें रुद्र बजरंग, जब जन्म पृथ्वी पे पाया।।
बाल अवस्था में रवि को, फल समझकर खाया।।।।
नाग नहीं कोई शेषनाग जैसा,
देव नहीं कोई महादेव जैसा,
धर्म नहीं कोई गृहस्थ जैसा,
कर्म नहीं कोई सत्कर्म जैसा,
स्वर भी देखे स्वर वाले भी देखे,
पर स्वर ना कोयल की तान जैसा।।
पर देखा ना वीर हनुमान जैसा
पर देखा ना वीर हनुमान जैसा
पर देखा ना वीर हनुमान जैसा
पर देखा ना वीर हनुमान जैसा

  || जय श्री राम ||

भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
मो. 0917891529862

घर पर झंडा लगाने से बढ़ता है सुख

🚩🚩🚩🚩
घर पर झंडा🚩 लगाने से बढ़ता है सुख क्योंकि...
घर पर झंडा 🚩लगाने से बढ़ता है सुख क्योंकि...
झंडे या ध्वजा 🚩को विजय और
सकारात्मकता ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।
इसीलिए पहले के जमाने में जब युद्ध में
या किसी अन्य कार्य में विजय प्राप्त
होती थी तो ध्वजा फहराई🚩
जाती थी। वास्तु के अनुसार
भी झंडे को शुभता का प्रतीक
माना गया है। माना जाता है कि घर पर ध्वजा 🚩लगाने से नकारात्मक
ऊर्जा का नाश तो होता ही है साथ
ही घर को बुरी नजर
भी नहीं लगती है। लेकिन
घर के उत्तर-पश्चिम कोने में यदि ध्वजा लगाई
जाती है तो उसे वास्तु के दृष्टिकोण से बहुत अधिक
शुभ माना जाता है।
वायव्य कोण यानी उत्तर पश्चिम में
झंडा या ध्वजा🚩 वास्तु के अनुसार जरूर लगाना चाहिए
क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उत्तर-पश्चिम कोण
यानी वायव्य कोण में राहु का निवास माना गया है।
ज्योतिष के अनुसार राहु को रोग, शोक व दोष का कारक
माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यदि घर के इस
कोने में किसी भी तरह का वास्तुदोष
हो या ना भी हो तब
भी ध्वजा या झंडा 🚩लगाने से घर में रहने वाले
सदस्यों के रोग, शोक व दोष का नाश होता है और घर
की सुख व समृद्धि बढ़ती है।
🚩🚩🚩🚩🚩
🚩🚩 जय श्री राम🚩 🚩


भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
मो. 0917891529862
एक टीचर ने मजाक में
बच्चो से कहा
जो बच्चा कल जन्नत से
मिट्टी लायेगा, मैं
उसे इनाम दूँगी..!
अगले दिन टीचर
क्लास में सब बच्चों से
पूछती है.
क्या कोई बच्चा मिट्टी लाया?
सारे बच्चे खामोश रहते हैं...
एक बच्चा उठकर
टीचर के पास जाता है
और कहता है,
लीजिये मैडम,
मैं लाया हूँ जन्नत से
मिट्टी..!
टीचर उस बच्चे को
डांटते हुए कहती है;
मुझे बेवकूफ़ समझता है..
कहाँ से लाया है ये
मिट्टी..?
-
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रोते रोते बच्चा बोला -"मेरी माँ के
पैर के नीचे से..........

भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
मो. 0917891529862

तुलसी जी का महत्त्व जाने

जय श्रीकृष्णा
राजस्थान में जयपुर के पास एक इलाका है – लदाणा। पहले वह एक छोटी सी रियासत थी। उसका राजा एक बार शाम के समय बैठा हुआ था। उसका एक मुसलमान नौकर किसी काम से वहाँ आया। राजा की दृष्टि अचानक उसके गले में पड़ी तुलसी की माला पर गयी। राजा ने चकित होकर पूछाः
"क्या बात है, क्या तू हिन्दू बन गया है ?"
"नहीं, हिन्दू नहीं बना हूँ।"
"तो फिर तुलसी की माला क्यों डाल रखी है ?"
"राजासाहब ! तुलसी की माला की बड़ी महिमा है।"
"क्या महिमा है ?"
"राजासाहब ! मैं आपको एक सत्य घटना सुनाता हूँ। एक बार मैं अपने ननिहाल जा रहा था। सूरज ढलने को था। इतने में मुझे दो छाया-पुरुष दिखाई दिये, जिनको हिन्दू लोग यमदूत बोलते हैं। उनकी डरावनी आकृति देखकर मैं घबरा गया। तब उन्होंने कहाः
"तेरी मौत नहीं है। अभी एक युवक किसान बैलगाड़ी भगाता-भगाता आयेगा। यह जो गड्ढा है उसमें उसकी बैलगाड़ी का पहिया फँसेगा और बैलों के कंधे पर रखा जुआ टूट जायेगा। बैलों को प्रेरित करके हम उद्दण्ड बनायेंगे, तब उनमें से जो दायीं ओर का बैल होगा, वह विशेष उद्दण्ड होकर युवक किसान के पेट में अपना सींग घुसा देगा और इसी निमित्त से उसकी मृत्यु हो जायेगी। हम उसी का जीवात्मा लेने आये हैं।"
राजासाहब ! खुदा की कसम, मैंने उन यमदूतों से हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि 'यह घटना देखने की मुझे इजाजत मिल जाय।' उन्होंने इजाजत दे दी और मैं दूर एक पेड़ के पीछे खड़ा हो गया। थोड़ी ही देर में उस कच्चे रास्ते से बैलगाड़ी दौड़ती हुई आयी और जैसा उन्होंने कहा था ठीक वैसे ही बैलगाड़ी को झटका लगा, बैल उत्तेजित हुए, युवक किसान उन पर नियंत्रण पाने में असफल रहा। बैल धक्का मारते-मारते उसे दूर ले गये और बुरी तरह से उसके पेट में सींग घुसेड़ दिया और वह मर गया।"
राजाः "फिर क्या हुआ ?"
नौकरः "हजूर ! लड़के की मौत के बाद मैं पेड़ की ओट से बाहर आया और दूतों से पूछाः'इसकी रूह (जीवात्मा) कहाँ है, कैसी है ?"
वे बोलेः 'वह जीव हमारे हाथ नहीं आया। मृत्यु तो जिस निमित्त से थी, हुई किंतु वहाँ हुई जहाँ तुलसी का पौधा था। जहाँ तुलसी होती है वहाँ मृत्यु होने पर जीव भगवान श्रीहरि के धाम में जाता है। पार्षद आकर उसे ले जाते हैं।'
हुजूर ! तबसे मुझे ऐसा हुआ कि मरने के बाद मैं बिहिश्त में जाऊँगा कि दोजख में यह मुझे पता नहीं, इसले तुलसी की माला तो पहन लूँ ताकि कम से कम आपके भगवान नारायण के धाम में जाने का तो मौका मिल ही जायेगा और तभी से मैं तुलसी की माला पहनने लगा।'
कैसी दिव्य महिमा है तुलसी-माला धारण करने की ! इसीलिए हिन्दुओं में किसी का अंत समय उपस्थित होने पर उसके मुख में तुलसी का पत्ता और गंगाजल डाला जाता है, ताकि जीव की सदगति हो जाय।
जय श्रीकृष्णा

भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
मो. 0917891529862

संस्कृत को जानें भारत को पहचानें | आईए अभ्यास करें

इंग्लैण्ड मे अंग्रेजी
फ्रांस मे फ्रन्च
जर्मनी मे जर्मन्
तो भारत मे संस्कृत क्यों नही | संस्कृत को जानें भारत को पहचानें |
आईए अभ्यास करें
ॐ ॥ पारिवारिक नाम संस्कृत मे ......
जनक: - पिता , माता - माता
पितामह: - दादा , पितामही - दादी
प्रपितामह: - परदादा , प्रतितामही - परदादी
मातामह: - नाना , मातामही - नानी
प्रमातामह: - परनाना , प्रमातामही - परनानी
पितृव्य: - चाचा ,
पितृव्या- चाची
पितृस्वसा - बुआ
पैतृष्वस्रिय: - फुफेराभाई
पति: - पति , भार्या - पत्नी
पुत्र: / सुत: / आत्मज: - पुत्र , स्नुषा - पुत्र वधू
जामातृ - जँवाई ( दामाद ) , आत्मजा - पुत्री
पौत्र: - पोता , पौत्री - पोती
प्रपौत्र:,प्रपौत्री - पतोतरा
दौहित्र: - पुत्री का पुत्र , दौहितत्री - पुत्री का पुत्री
देवर: - देवर , यातृ,याता - देवरानी , ननांदृ,ननान्दा - ननद
अनुज: - छोटाभाई , अग्रज: - बड़ा भाई
भ्रातृजाया,प्रजावती - भाभी
भ्रात्रिय:,भ्रातृपुत्र: - भतीजा , भ्रातृसुता - भतीजी
पितृव्यपुत्र: - चचेराभाई , पितृव्यपुत्री - चचेरी बहन
आवुत्त: - बहनोई , भगिनी - बहिन , स्वस्रिय:,भागिनेय: - भानजा
नप्तृ,नप्ता - नाती
मातुल: - मामा , मातुलानी - मामी
मातृष्वसृपति - मौसा , मातृस्वसृ,मातृस्वसा - मौसी
मातृष्वस्रीय: - मौसेरा भाई
श्वशुर: - ससुर , श्वश्रू: - सास , श्याल: - साला
सम्बन्धीन् - समधी, सम्बन्धिनि - समधिन
पशव: ।।
उंट - उष्‍ट्र‚ क्रमेलकः
उद्बिलाव -
कछुआ - कच्‍छप:
केकडा - कर्कट: ‚ कुलीरः
कुत्‍ता - श्‍वान:, कुक्कुर:‚ कौलेयकः‚ सारमेयः
कुतिया – सरमा‚ शुनि
कंगारू - कंगारुः
कनखजूरा – कर्णजलोका
खरगोश - शशक:
गाय - गो, धेनु:
गैंडा - खड्.गी
गीदड (सियार) - श्रृगाल:‚ गोमायुः
गिलहरी - चिक्रोड:
गिरगिट - कृकलास:
गोह – गोधा
गधा - गर्दभ:, रासभ:‚ खरः
घोडा - अश्‍व:, सैन्‍धवम्‚ सप्तिः‚ रथ्यः‚ वाजिन्‚ हयः
चूहा - मूषक:
चीता - तरक्षु:, चित्रक:
चित्‍तीदार घोडा - चित्ररासभ:
छछूंदर - छुछुन्‍दर:
छिपकली – गृहगोधिका
जिराफ - चित्रोष्‍ट्र:
तेंदुआ – तरक्षुः
दरियाई घोडा - जलाश्‍व:
नेवला - नकुल:
नीलगाय - गवय:
बैल - वृषभ: ‚ उक्षन्‚ अनडुह
बन्‍दर - मर्कट:
बाघ - व्‍याघ्र:‚ द्वीपिन्
बकरी - अजा
बकरा - अज:
बनमानुष - वनमनुष्‍य:
बिल्‍ली - मार्जार:, बिडाल:
भालू - भल्‍लूक:
भैस - महिषी
भैंसा – महिषः
भेंडिया - वृक:
भेंड - मेष:
मकड़ी – उर्णनाभः‚ तन्तुनाभः‚ लूता
मगरमच्‍छ - मकर: ‚ नक्रः
मछली – मत्स्यः‚ मीनः‚ झषः
मेंढक - दर्दुरः‚ भेकः
लोमडी -लोमशः
शेर - सिंह:‚ केसरिन्‚ मृगेन्द्रः‚ हरिः
सुअर - सूकर:‚ वराहः
सेही – शल्यः
हाथी - हस्ति, करि, गज:
हिरन - मृग:
बाल - केशा:
2- माँग - सीमन्‍तम्
3- सफेद बाल - पलितकेशा:
4- मस्‍तक - ललाटम्
5- भौंह - भ्रू:
6- पलक - पक्ष्‍म:
7- पुतली - कनीनिका
8- नाक - नासिका
9- उपरी ओंठ - ओष्‍ठ:
10- निचले ओंठ - अधरम्
11- ठुड्डी - चिबुकम्
12- गाल - कपोलम्
13- गला - कण्‍ठ:
14- दाढी, मूँछ- श्‍मश्रु:
15- मुख - मुखम्
16- जीभ - जिह्वा
17- दाँत- दन्‍ता:
18- मसूढे - दन्‍तपालि:
19- कन्‍धा - स्‍कन्‍ध:
20- सीना - वक्षस्‍थलम्
21- हाँथ - हस्‍त:
22- अँगुली - अंगुल्‍य:
23- अँगूठा - अँगुष्‍ठ:
24- पेट - उदरम्
25- पीठ - पृष्‍ठम्
26- पैर - पाद:
27- रोएँ - रोम
।।संस्कृतं सर्वेषां संस्कृतं सर्वत्र।।
*शब्दान् जानीमहे वाक्यप्रयोगञ्च कुर्महे >
विमानम् ।
उपायनम् ।
यानम् ।
आसन्दः / आसनम् ।
नौका ।
पर्वत:।
रेलयानम् ।
लोकयानम् ।
द्विचक्रिका ।
ध्वज:।
शशक:।
व्याघ्रः।
वानर:।
अश्व:।
मेष:।
गज:।
कच्छप:।
पिपीलिका ।
मत्स्य:।
धेनु: ।
महिषी ।
अजा ।
कुक्कुट:।
मूषक:।
मकर:।
उष्ट्रः।
पुष्पम् ।
पर्णे (द्वि.व)।
वृक्ष:।
सूर्य:।
चन्द्र:।
तारक: / नक्षत्रम् ।
छत्रम् ।
बालक:।
बालिका ।
कर्ण:।
नेत्रे (द्वि.व)।
नासिका ।
जिह्वा ।
औष्ठौ (द्वि.व) ।
चपेटिका ।
बाहुः ।
नमस्कारः।
पादत्राणम् (पादरक्षक:) ।
युतकम् ।
स्यूत:।
ऊरुकम् ।
उपनेत्रम् ।
वज्रम् (रत्नम् ) ।
सान्द्रमुद्रिका ।
घण्टा ।
ताल:।
कुञ्चिका ।
⌚ घटी।
विद्युद्दीप:।
करदीप:।
विद्युत्कोष:।
छूरिका ।
✏ अङ्कनी ।
पुस्तकम् ।
कन्दुकम् ।
चषक:।
चमसौ (द्वि.व)।
चित्रग्राहकम् ।
सड़्गणकम् ।
जड़्गमदूरवाणी ।
☎ स्थिरदूरवाणी ।
ध्वनिवर्धकम् ।
⏳समयसूचकम् ।
⌚ हस्तघटी ।
जलसेचकम् ।
द्वारम् ।
भुशुण्डिका ।(बु?) ।
आणिः ।
ताडकम् ।
गुलिका/औषधम् ।
धनम् ।
✉ पत्रम् ।
पत्रपेटिका ।
कर्गजम्/कागदम् ।
सूचिपत्रम् ।
दिनदर्शिका ।
✂ कर्त्तरी ।
पुस्तकाणि ।
वर्णाः ।
दूरदर्शकम् ।
सूक्ष्मदर्शकम् ।
पत्रिका ।
सड़्गीतम् ।
पारितोषकम् ।
⚽ पादकन्दुकम् ।
☕ चायम् ।

भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
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अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करना जन्मसिद्ध अधिकार है !

अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करना जन्मसिद्ध अधिकार है !
(राष्ट्रभाषा-दिवस : १४ सितम्बर)
लॉर्ड मैकाले ने कहा था : ‘मैं यहाँ की शिक्षा-पद्धति में ऐसे कुछ संस्कार डाल जाता हूँ कि आनेवाले वर्षों में भारतवासी अपनी ही संस्कृति से घृणा करेंगे... मंदिर में जाना पसंद नहीं करेंगे... माता-पिता को प्रणाम करने में तौहीन महसूस करेंगे... वे शरीर से तो भारतीय होंगे लेकिन दिलोदिमाग से हमारे ही गुलाम होंगे...
हमारी शिक्षा-पद्धति में उसके द्वारा डाले गये संस्कारों का प्रभाव आज स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है । आज के विद्यार्थी पढ-लिख के ग्रेजुएट होकर बेरोजगार हो नौकर बनने के लिए भटकते रहते हैं ।
  ‘‘करोडों लोगों को अंग्रेजी की शिक्षा देना उन्हें गुलामी में डालने जैसा है । मैकाले ने शिक्षा की जो बुनियाद डाली, वह सचमुच गुलामी की बुनियाद थी । यह क्या कम जुल्म की बात है कि अपने देश में अगर मुझे इंसाफ पाना हो तो मुझे अंग्रेजी भाषा का उपयोग करना पडे ! हिन्दुस्तान को गुलाम बनानेवाले तो हम अंग्रेजी जाननेवाले लोग हैं । प्रजा की हाय अंग्रेजी पर नहीं बल्कि हम लोगों पर पडेगी ।
अंग्रेज़ी का हमारे जीवन पर कितना दुष्प्रभाव पडता है,: ‘‘विदेशी भाषा द्वारा शिक्षा पाने में जो बोझ दिमाग पर पडता है वह असह्य है । यह बोझ केवल हमारे बच्चे ही उठा सकते हैं लेकिन उसकी कीमत उन्हें ही चुकानी पडती है । वे दूसरा बोझ उठाने के लायक नहीं रह जाते । इससे हमारे ग्रेजुएट अधिकतर निकम्मे, कमजोर, निरुत्साही, रोगी और कोरे नकलची बन जाते हैं । उनमें खोज की शक्ति, विचार करने की ताकत, साहस, धीरज, बहादुरी, निडरता आदि गुण बहुत ही क्षीण हो जाते हैं । इससे हम नयी योजनाएँ नहीं बना सकते, बनाते हैं तो उन्हें पूरा नहीं कर सकते । कुछ लोग जिनमें उपरोक्त गुण दिखाई देते हैं, अकाल मृत्यु के शिकार हो जाते हैं ।
  ‘‘माँ के दूध के साथ जो संस्कार मिलते हैं और जो मीठे शब्द सुनाई देते हैं, उनके और पाठशाला के बीच जो मेल होना चाहिए, वह विदेशी भाषा द्वारा शिक्षा लेने से टूट जाता है । हम ऐसी शिक्षा के शिकार होकर मातृद्रोह करते हैं ।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भी मातृभाषा को बडे सम्मान से देखा और कहा था कि ‘‘अपनी भाषा में शिक्षा पाना जन्मसिद्ध अधिकार है । मातृभाषा में शिक्षा दी जाय या नहीं, इस तरह की कोई बहस होना ही बेकार है । उनकी मान्यता थी कि ‘जिस तरह हमने माँ की गोद में जन्म लिया है, उसी तरह मातृभाषा की गोद में जन्म लिया है । ये दोनों माताएँ हमारे लिए सजीव और अपरिहार्य हैं ।
गांधीजी ने मातृभाषा-प्रेम को व्यक्त करते हुए कहा कि ‘‘मेरी मातृभाषा में कितनी ही खामियाँ क्यों न हों, मैं उससे उसी तरह चिपका रहूँगा जिस तरह अपनी माँ की छाती से । वही मुझे जीवनदायी दूध दे सकती है । मैं अंग्रेजी को उसकी जगह प्यार करता हूँ लेकिन अंग्रेजी उस जगह को हडपना चाहती है जिसकी वह हकदार नहीं है तो मैं उससे सख्त नफरत करूँगा । मैं इसे दूसरी जबान के तौर पर जगह दूँगा लेकिन विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम, स्कूलों में नहीं । वह कुछ लोगों के सीखने की चीज हो सकती है, लाखों-करोडों की नहीं । रूस ने बिना अंग्रेजी के विज्ञान में इतनी उन्नति की है । आज अपनी मानसिक गुलामी की वजह से ही हम यह मानने लगे हैं कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता । मैं इस चीज को नहीं मानता ।
विद्यार्थियों को मातृभाषा में शिक्षा देना मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक रूप से अति आवश्यक है, क्योंकि विद्यालय आने पर बच्चे यदि अपनी भाषा को व्यवहार में आयी हुई देखते हैं तो वे विद्यालय में आत्मीयता का अनुभव करने लगते हैं । साथ ही उन्हें सब कुछ यदि उन्हींकी भाषा में पढाया जाता है तो उनके लिए सारी चीजों को समझना बहुत ही आसान हो जाता है । भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने भी ‘निज भाषा कहकर मातृभाषा के महत्त्व व प्रेम को अपने निम्नलिखित बहुचर्चित दोहे में व्यक्त किया है :
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल । बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।।
उन्नति पूरी है तबqह, जब घर उन्नति होय । निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ सब कोय ।।
रवीन्द्रनाथजी ने जापान का दृष्टांत देते हुए बताया है कि ‘‘इस देश में जितनी उन्नति हुई है, वह वहाँ की अपनी भाषा जापानी के ही कारण है । जापान ने अपनी भाषा की क्षमता पर भरोसा किया और अंग्रेजी के प्रभुत्व से जापानी भाषा को बचाकर रखा ।
जापानी इसके लिए धन्यवाद के पात्र हैं क्योंकि वे अमेरिका जाते हैं तो वहाँ भी अपनी मातृभाषा में ही बातें करते हैं । ...और हम भारतवासी ! भारत में रहते हैं फिर भी अपनी हिन्दी, गुजराती आदि भाषाओं में अंग्रेजी के शब्दों की मिलावट कर देते हैं । गुलामी की मानसिकता ने ऐसी गन्दी आदत डाल दी है ।

भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
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तू शहरी कबूतरी, में छोरा गाँव  का,
तू फेन यो यो हनी सिंह की, में भक्त भोलेनाथ का..
       जय महाकाल
     हर हर महादेव


भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
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