रविवार, 27 सितंबर 2015

अनेक सनातन धर्मावलम्बी सोमरस को अल्कोहल समझते है जब की वेदों में वर्णित सोमरस अल्कोहल नहीं है सोमरस को अल्कोहल कहने वाले महामूर्ख है ऋग्वेद के प्रथम मंडल के सूक्त 135 की ऋचा 1499 में स्पष्ट वर्णन है की सोमरस एक औषधि है जिसे पर्वतो से प्राप्त किया जाता था एवम् इसमें गऊ का दुग्ध जौ अदि मिला कर देवताओ को अर्पित किया जाता था अब आप ही बताये की दुनिया की कौन सी अल्कोहल पर्वतो से प्राप्त होती है और कौन सी अल्कोहल में गऊ का दुग्ध ,जौ ,दही अदि मिलाकर पिया जाता है अतः स्पस्ट है कि सोमरस एक औषधीय पेय है न की अल्कोहल ।


भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
मो. 0917891529862

प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े फायद

14 प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े फायद
पुराने समय से बहुत सी परंपराएं प्रचलित हैं, जिनका पालन आज भी काफी लोग कर रहे हैं। ये परंपराएं धर्म से जुड़ी दिखाई देती हैं, लेकिन इनके वैज्ञानिक कारण भी हैं। जो लोग इन परंपराओं को अपने जीवन में उतारते हैं, वे स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियों से बचे रहते हैं। यहां जानिए ऐसी ही 14 खास परंपराएं, जिनका पालन अधिकतर परिवारों में किया जाता है…
1. एक ही गोत्र में शादी नहीं करना
Ancient Hindu Traditions & Benefits
कई शोधों में ये बात सामने आई है कि व्यक्ति को जेनेटिक बीमारी न हो इसके लिए एक इलाज है ‘सेपरेशन ऑफ़ जींस’, यानी अपने नजदीकी रिश्तेदारो में विवाह नहीं करना चाहिए। रिश्तेदारों में जींस सेपरेट (विभाजन) नहीं हो पाते हैं और जींस से संबंधित बीमारियां जैसे कलर ब्लाईंडनेस आदि होने की संभावनाएं रहती हैं। संभवत: पुराने समय में ही जींस और डीएनए के बारे खोज कर ली गई थी और इसी कारण एक गोत्र में विवाह न करने की परंपरा बनाई गई।
2. चूड़ियों का महत्व
पुराने समय मे ज्यादातर महिलाये सोने-चांदी की चूड़ियाँ पहना करती थी माना जाता है की सोने-चांदी के घर्षण से शरीर को इनके शक्तिशाली तत्व प्राप्त होते हैं, जिससे महिलाओं को स्वास्थ्य लाभ मिलता है। महिलाये पुरुषों से कमजोर होती है | चूड़ियाँ उनके हाथो को मजबूत और शक्तिशाली बनती है
3. सिंदूर लगाना
Sindur Khela During Hindu Festival Durga Puja
Source
सिंदूर हल्दी, नींबू और पारा के मिश्रण से तैयार किया जाता है। सिंदूर महिला के रक्तचाप को नियंत्रित करने के अलावा उनकी सेक्सुअल ड्राइव को भी बढाता है। इसे उस जगह पर लगाया जाता है , जहां पर पिट्यूटरी ग्रंथि होती है, जहां पर सारे हार्मोन डेवलप होते हैं। इसके अलावा सिंदूर तनाव से भी महिलाओं को दूर रखता है।
4. बच्चों का कान छेदन
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विज्ञान कहता है कि कर्णभेद से मस्तिष्क में रक्त का संचार समुचित प्रकार से होता है। इससे बौद्घिक योग्यता बढ़ती है। और बच्चो के चेहरे पर चमक आती है | इसके कारण बच्चा बेहतर ज्ञान प्राप्त कर लेता है
5 पाव छूना और ज़मीन पर बैठ कर भोजन करना
Langar
Source
बड़ो ले चरण स्पर्श करने से रक्त पवाह सर की तरफ होता है और इस तरह से चरणर्-स्पश करने से अपने से बड़ों की विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति हमारे शरीर को नयी ऊर्जा प्रदान कर ऊर्जावान, निरोगी और सकारात्मक विचारों से परिपूर्ण कर देती है। सुखासन से पूरे शरीर में रक्त-संचार समान रूप से होने लगता है। जिससे शरीर अधिक ऊर्जावान हो जाता है।तथा पृथ्वी की ऊर्जा भी भोजन के साथ हमतक पहुचती है।
6. हाथों में मेहंदी लगाना
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Source
विज्ञान कहता है की मेंहदी बहुत ठंडी होती है इस लगाने से दिमाग ठंडा रहता है और तनाव भी कम होता है इसलिये शादी के दिन दुल्‍हने मेंहदी लगाती हैं, जिससे उन्‍हें शादी का तनाव ना हो पाए।
7. सर पे चोटी रखना
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सिर पर चोंटी रखने की परंपरा को हिन्दुत्व की पहचान तक माना जाता है । असल में जिस स्थान पर शिखा यानि कि चोंटी रखने की परंपरा है, वहा पर सिर के बीचों-बीच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है।सुषुम्रा नाड़ी इंसान के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चोटी सुषुम्रा नाड़ी को हानिकारक प्रभावों से बचाती है
8. भोजन के अंत में मिठाई खाना
Source
जब हम कुछ मसालेदार भोजन खाते हैं, तो हमारे शरीर एसिड बने लगता है जिससे हमारा खाना पचता है और यह एसिड ज्यादा ना बने इसके लिए आखिर में मिठाई खाई जाती है जो पाचन प्रक्रिया शांत करती है।
9. तुलसी के पेड़ की क्यों पूजा होती है.
Tulsi
Source
तुलसी में विद्यमान रसायन वस्तुतः उतने ही गुणकारी हैं, जितना वर्णन शास्रों में किया गया है। यह कीटनाशक है, कीटप्रतिकारक तथा खतरनाक जीवाणुनाशक है। विशेषकर एनांफिलिस जाति के मच्छरों के विरुद्ध इसका कीटनाशी प्रभाव उल्लेखनीय है।
10. पीपल के वृक्ष की पूजा
piple
Source
पीपल की उपयोगिता और महत्ता वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनों कारणों से है। यह वृक्ष अन्य वृक्षों की तुलना में वातावरण में ऑक्सीजन की अधिक-से-अधिक मात्रा में अभिवृद्धि करता है। यह प्रदूषित वायु को स्वच्छ करता है और आस-पास के वातावरण में सात्विकता की वृद्धि भी करता है। इसके संसर्ग में आते ही तन-मन स्वतः हर्षित और पुलकित हो जाता है। यही कारण है कि इस वृक्ष के नीचे ध्यान एवं मंत्र जप का विशेष महत्व है।


भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
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महाराणा प्रताप के बेटे अमर सिंह ने युद्ध में मुगल
सेनापति अब्दुल रहीम खां को परास्त कर दिया।
फिर उन्होंने मुगल सरदारों के साथ ही मुगलों के
हरम को भी कब्जे में ले लिया।
महाराणा प्रताप को जब यह समाचार
मिला तो वह रुग्णावस्था में ही युद्ध क्षेत्र में
जाकर अमर सिंह पर गरज पड़े, 'ऐसा नीच काम करने
से पहले तू मर क्यों नहीं गया! हमारी भारतीय
संस्कृति को कलंकित करते तुझे लाज न आई?
अमर सिंह पिता के सामने लज्जित खड़े रहे।
महाराणा प्रताप ने तत्काल मुगल हरम में पहुंचकर
बड़ी बेगम को प्रणाम करते हुए
कहा,'बड़ी साहिबा, जो सिर शहंशाह अकबर के
सामने नहीं झुका, वह आपके सामने झुकाता हूं।
मेरे बेटे से जो अपराध हुआ, उसे क्षमा करें। हमारे
लिए स्त्री पूजनीय है, आप
लोगों को बंदी बनाकर उसने
हमारी संस्कृति का अपमान किया है।'
उधर शहंशाह अकबर ने जब मुगल हरम की चिंता करते
हुए सेनापति अब्दुल रहीम
खां को फटकारा तो उसने बादशाह को आश्वस्त
करते हुए कहा, 'बेगम वहां उसी तरह महफूज हैं, जिस
तरह शाही महल में रहती हैं।'
इस पर अकबर ने कहा, 'पर महाराणा प्रताप से
हमारी जंग चल रही है।' इस पर सेनापति बोले,'
बादशाह सलामत, महाराणा प्रताप
हिंदुस्तानी संस्कृति के रक्षक हैं, वह बेगम को कुछ न
होने देंगे।' शहंशाह अकबर शांत तो हुए मगर
उनकी फिक्र कम न हुई।
जब दूसरे दिन राजपूत सैनिकों की कड़ी सुरक्षा में
राजकीय सम्मान के साथ
शाही बेगमों की पालकी आगरा के किले में
पहुंची तो बादशाह अकबर ने कहा,
'महाराणा प्रताप जैसा राजा इतिहास में कम
ही पैदा होता है। वे हिंदुस्तानी तहजीब के
भी सच्चे रखवाले हैं।

         जय एकलिंग जी
☆जय महाराणा प्रताप सिंह☆


भमावत 
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गुरुवार, 17 सितंबर 2015

कलियुग तूं कैसा है??
बिल्कुल "काला- युग "जैसा है।
"भारत" कलियुग में इंडिया बन गया ।
"सदाचारी" देश अब भ्रष्टाचारी बन गया ।।
नहीं सोचा कभी ये दशा होगी हमारी ।
सदाचारी की जगह पैदा होगा बलात्कारी।।
सीता सावित्री भी तब रोई होगी।
"दामिनी" जब ऊपर गई होगी ।।
अब तो ५ वर्ष की "गुडिया" भी रोती है ।
जीवन और मौत के बारे में सोचती है।।
हमने "हनुमान- ब्रह्मचारी" की कथा पढ़ी है।
किंतु कलियुग ने तो बलात्कारी की कथा गढ़ी है।।
कलियुग के बारे में सुना था मैने लेक्चर ।
लेकिन अब तो कलियुग ने दिखा दी अपनी पिक्चर।।
लेकिन परिवर्तन संसार का नियम है जानते है हम ।
फिर से इंडिया को भारत बनायेंगे बाजुअों में है दम ।।
अब भ्रष्टाचार का नामो-निशान नहीं होगा।
विश्व का गुरु पुन: मेरा हिंदुस्तान होगा ।।

भमावत 
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मंगलवार, 15 सितंबर 2015

गाय प्रश्नोतरी ????

गाय प्रश्नोतरी ????
* भगवान कृष्ण ने किस ग्रंथ में कहा है ‘धेनुनामसिम’ मैं गायों में कामधेनु हूं?
- श्रीमद् भगवतगीता |
* ‘चाहे मुझे मार डालो पर गाय पर हाथ न उठाओ’ किस महापुरुष ने कहा था?
- बाल गंगाधर तिलक |
* रामचंद्र ‘बीर’ ने कितने दिनों तक गौहत्या पर रोक लगवाने के लिए अनशन किया?
-- 70 दिन |
* पंजाब में किस शासक के राज्य में गौ हत्या पर मृत्यु दंड दिया जाता था?
-- पंजाब केसरी महाराज रणजीत सिंह |
* गाय के घी से हवन पर किस देश में वैज्ञानिक प्रयोग किया गया?
-- रूस |
* गोबर गैस संयंत्र में गैस प्राप्ति के बाद बचे पदार्थ का उपयोग किस में होता है?
-- खेती के लिए जैविक (केंचुआ) खाद बनाने में |
* मनुष्य को गौ-यज्ञ का फल किस प्रकार होता है?
-- कत्लखाने जा रही गाय को छुड़ाकर उसके पालन-पोषण की व्यवस्था करने पर |
* एक तोला (10 ग्राम) गाय के घी से यज्ञ करने पर क्या बनता है?
- एक टन आँक्सीजन |
* प्रसिद् मुस्लिम संत रसखान ने क्या अभिलाषा व्यक्त की थी?
-- यदि पशु के रूप में मेरा जन्म हो तो मैं बाबा नंद की गायों के बीच में जन्म लूं |
* पं. मदन मोहन मालवीय जी की अंतिम इच्छा क्या थी?
-- भारतीय संविधान में सबसे पहली धारा सम्पूर्ण गौवंश हत्या निषेध की बने |
* भगवान शिव का प्रिय श्री सम्पन्न ‘बिल्वपत्र’ की उत्पत्ति कहा से हुई है?
-- गाय के गोबर से |
* गौवंशीय पशु अधिनियम 1995 क्या है?
-- 10 वर्ष तक का कारावास और 10,000 रुपए तक का जुर्माना |
* गाय की रीढ़ में स्थित सुर्यकेतु नाड़ी से क्या होता है?
-- सर्वरोगनाशक, सर्वविषनाशक होता है |
* देशी गाय के एक ग्राम गोबर में कम से कम कितने जीवाणु होते है?
-- 300 करोड़ |
* गाय के दूध में कौन-कौन से खनिज पाए जाते है?
-- कैलिशयम 200 प्रतिशत, फास्फोरस 150 प्रतिशत, लौह 20 प्रतिशत, गंधक 50 प्रतिशत, पोटाशियम 50 प्रतिशत, सोडियम 10 प्रतिशत, पाए जाते है |
* ‘गौ सर्वदेवमयी और वेद सर्वगौमय है’, यह युक्ति किस पुराण की है?
-- स्कन्द पुराण |
* विश्व की सबसे बड़ी गौशाला का नाम बताइए?
-- पथमेड़ा, राजस्थान |
* गाय के दूध में कौन-कौन से विटामिन पाए जाते है?
-- विटामिन C 2 प्रतिशत, विटामिन A (आई.क्यू) 174 और विटामिन D 5 प्रतिशत |
* यदि हम गायों की रक्षा करेंगे तो गाय हमारी रक्षा करेंगी ‘यह संदेश किस महापरुष का है?
-- पंडित मदन मोहन मालवीय का |
* ‘गौ’ धर्म, अर्थ, काम और
मोक्ष की धात्री होने के कारण कामधेनु है| इसका अनिष्ट चिंतन ही पराभव का कारण है| यह विचार किनका था?
-- महर्षि अरविंद का |
* भगवान बालकृष्ण ने गायें चराने का कार्य किस दिन से प्रारम्भ किया था?
-- गोपाष्टमी से |
* श्री राम ने वन गमन से पूर्व किस ब्राह्मण को गायें दान की थी?
-- त्रिजट ब्राह्मण को |
* ‘जो पशु हां तों कहा बसु मेरो, चरों चित नंद की धेनु मंझारन’ यह अभिलाषा किस मुस्लिम कवि की है?
-- रसखान |
* ‘यही देहु आज्ञा तुरुक को खापाऊं, गौ माता का दुःख सदा मैं मिटआऊँ‘ यह इच्छा किस गुरु ने प्रकट की?
- गुरु गोबिंद सिंह जी ने |

जय गौ माँ

भमावत 
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मो. 0917891529862
चलता रहा हुं अग्निपथ पर...चलता चला जाऊँगा...
हिन्दू बन कर जन्म लिया मैंने...हिन्दू बन कर ही मर जाऊंगा.
श्री राम की संतान हूँ...रुकना मैंने सीखा नहीं...
महाकाल का भक्त हूँ...झुकना मैंने सीखा नही...
ह्रदय में जो धड़क रहा है...वो धड़कन तेरे नाम का...
रगो में जो बह रहा है...वो लहू है श्री राम का.....
  ॥ जय श्री  ॥

भमावत 
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भूत-प्रेतो को निमंत्रण देता है घर के फ्रिज में रखा हुआ आटा ।

भूत-प्रेतो को निमंत्रण देता है घर के
फ्रिज में रखा हुआ आटा ।
वर्तमान में बहुत सी गृहिणियां खाना
बनाते समय रात को बचा हुआ अतिरिक्त
आटा गोल लोई बनाकर उसे फ्रिज में रख
देती है और उसका प्रयोग अगले दिन करती
है। कई बार सुबह के समय भी आटा बचने पर
ऎसा ही किया जाता है। धर्मशास्त्रों
के अनुसार गूंथा हुआ आटा पिण्ड माना
जाता है जिसे मृतात्मा के भक्षण के
लिए अर्पित किया जाता है।
जिन भी घरों में लगातार या अक्सर
गूंथा हुआ आटा फ्रिज में रखने की
परंपरा बन जाती है वहां पर भूत, प्रेत
तथा अन्य ऊपरी हवाएं भोजन करने के लिए
आने लग जाती है। इनमें अधिकतर वे
आत्माएं होती है जिन्हें उनके
घरवालों ने भुला दिया या जिनकी अब
तक मुक्ति नहीं हो सकी है। ऎसी
आत्माओं के घर में आने के साथ ही घर
में अनेकों समस्याएं भी आनी शुरू हो
जाती हैं।
बचे हुए आटे को इस तरह रखने वाले सभी
घरों में किसी न किसी प्रकार के
अनिष्ट देखने को मिलते हैं। वहां
अक्सर बीमारियां, क्रोध, आलस आदि बने
रहते हैं और घर में रहने वालों की भी
तरक्की नहीं हो पाती है।
शास्त्रों के अनुसार ऎसे किसी भी
चीज को घर में स्थान नहीं देना चाहिए
जो मृतात्माओं का भोजन हो अथवा
उन्हें किसी भी प्रकार से आमंत्रित
करने की क्षमता रखती हो। इसके ही रात
के बासी बचे आटे से रोटी बनाना शरीर
के लिए भी नुकसानदेह होता है। ऎसा
भोजन तामसिकता को तो बढ़ावा देता
ही है साथ में शरीर को भी रोगों का घर
बना देता है जबकि ताजा बना भोजन शरीर
को स्फूर्ति, शक्ति और स्वास्थ्य
देता है। इन सभी चीजों को देखते हुए
हमें घर में बासी आटा नही रखना चहिये ।

भमावत 
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सोमवार, 14 सितंबर 2015

अंग्रेज ने पूछा:
"भारतीय स्त्रियाँ हाथ क्यों नहीं मिलाती हैं, इसमें कुछ भी नुकसान नहीं है..."
स्वामी विवेकानंद जी ने जवाब दिया:
"क्या आपके देश में कोई साधारण व्यक्ति आपकी महारानी (Queen) से हाथ मिला सकता है???"
अंग्रेज: "नहीं"
स्वामी विवेकानंद: "हमारे देश में हर एक स्त्री महारानी (Queen) होती है।"
देखा ना वीर हनुमान जैसा,
1.
तीर्थ ना देखा प्रयाग जैसा,
नाग नहीं कोई शेषनाग जैसा,
चिन्ह नहीं कोई सुहाग जैसा,
तेज नहीं कोई भी आग जैसा,
अरे जल नहीं कोई गंगाजल जैसा,
फूल नहीं कोई कमल जैसा,
शैला नहीं कोई गरल जैसा,
आज नहीं बिन देखा कल जैसा,
पर देखा ना वीर हनुमान जैसा
2.
पूरब से सूरज निकलता
नभ लालिमा से लजाये,
लाल जोड़े में दुल्हनिया
जैसे घूँघट में शरमाये।।।
अवतारी नहीं कोई राम जैसा,
पितृभक्त नहीं परशुराम जैसा,
छलिया नहीं घनश्याम जैसा,
धाम नहीं विष्णु के धाम जैसा,
पर देखा ना वीर हनुमान जैसा
3.
व्रत नहीं कोई निराहार जैसा,
प्यार नहीं माता के प्यार जैसा,
शस्त्र नहीं कोई तलवार जैसा,
पुत्र नहीं श्रवण कुमार जैसा,
पर देखा ना वीर हनुमान जैसा।।।
4.
है ग्यारहवें रुद्र बजरंग, जब जन्म पृथ्वी पे पाया।।
बाल अवस्था में रवि को, फल समझकर खाया।।।।
नाग नहीं कोई शेषनाग जैसा,
देव नहीं कोई महादेव जैसा,
धर्म नहीं कोई गृहस्थ जैसा,
कर्म नहीं कोई सत्कर्म जैसा,
स्वर भी देखे स्वर वाले भी देखे,
पर स्वर ना कोयल की तान जैसा।।
पर देखा ना वीर हनुमान जैसा
पर देखा ना वीर हनुमान जैसा
पर देखा ना वीर हनुमान जैसा
पर देखा ना वीर हनुमान जैसा

  || जय श्री राम ||

भमावत 
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घर पर झंडा लगाने से बढ़ता है सुख

🚩🚩🚩🚩
घर पर झंडा🚩 लगाने से बढ़ता है सुख क्योंकि...
घर पर झंडा 🚩लगाने से बढ़ता है सुख क्योंकि...
झंडे या ध्वजा 🚩को विजय और
सकारात्मकता ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।
इसीलिए पहले के जमाने में जब युद्ध में
या किसी अन्य कार्य में विजय प्राप्त
होती थी तो ध्वजा फहराई🚩
जाती थी। वास्तु के अनुसार
भी झंडे को शुभता का प्रतीक
माना गया है। माना जाता है कि घर पर ध्वजा 🚩लगाने से नकारात्मक
ऊर्जा का नाश तो होता ही है साथ
ही घर को बुरी नजर
भी नहीं लगती है। लेकिन
घर के उत्तर-पश्चिम कोने में यदि ध्वजा लगाई
जाती है तो उसे वास्तु के दृष्टिकोण से बहुत अधिक
शुभ माना जाता है।
वायव्य कोण यानी उत्तर पश्चिम में
झंडा या ध्वजा🚩 वास्तु के अनुसार जरूर लगाना चाहिए
क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उत्तर-पश्चिम कोण
यानी वायव्य कोण में राहु का निवास माना गया है।
ज्योतिष के अनुसार राहु को रोग, शोक व दोष का कारक
माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यदि घर के इस
कोने में किसी भी तरह का वास्तुदोष
हो या ना भी हो तब
भी ध्वजा या झंडा 🚩लगाने से घर में रहने वाले
सदस्यों के रोग, शोक व दोष का नाश होता है और घर
की सुख व समृद्धि बढ़ती है।
🚩🚩🚩🚩🚩
🚩🚩 जय श्री राम🚩 🚩


भमावत 
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एक टीचर ने मजाक में
बच्चो से कहा
जो बच्चा कल जन्नत से
मिट्टी लायेगा, मैं
उसे इनाम दूँगी..!
अगले दिन टीचर
क्लास में सब बच्चों से
पूछती है.
क्या कोई बच्चा मिट्टी लाया?
सारे बच्चे खामोश रहते हैं...
एक बच्चा उठकर
टीचर के पास जाता है
और कहता है,
लीजिये मैडम,
मैं लाया हूँ जन्नत से
मिट्टी..!
टीचर उस बच्चे को
डांटते हुए कहती है;
मुझे बेवकूफ़ समझता है..
कहाँ से लाया है ये
मिट्टी..?
-
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-
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-
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-
रोते रोते बच्चा बोला -"मेरी माँ के
पैर के नीचे से..........

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तुलसी जी का महत्त्व जाने

जय श्रीकृष्णा
राजस्थान में जयपुर के पास एक इलाका है – लदाणा। पहले वह एक छोटी सी रियासत थी। उसका राजा एक बार शाम के समय बैठा हुआ था। उसका एक मुसलमान नौकर किसी काम से वहाँ आया। राजा की दृष्टि अचानक उसके गले में पड़ी तुलसी की माला पर गयी। राजा ने चकित होकर पूछाः
"क्या बात है, क्या तू हिन्दू बन गया है ?"
"नहीं, हिन्दू नहीं बना हूँ।"
"तो फिर तुलसी की माला क्यों डाल रखी है ?"
"राजासाहब ! तुलसी की माला की बड़ी महिमा है।"
"क्या महिमा है ?"
"राजासाहब ! मैं आपको एक सत्य घटना सुनाता हूँ। एक बार मैं अपने ननिहाल जा रहा था। सूरज ढलने को था। इतने में मुझे दो छाया-पुरुष दिखाई दिये, जिनको हिन्दू लोग यमदूत बोलते हैं। उनकी डरावनी आकृति देखकर मैं घबरा गया। तब उन्होंने कहाः
"तेरी मौत नहीं है। अभी एक युवक किसान बैलगाड़ी भगाता-भगाता आयेगा। यह जो गड्ढा है उसमें उसकी बैलगाड़ी का पहिया फँसेगा और बैलों के कंधे पर रखा जुआ टूट जायेगा। बैलों को प्रेरित करके हम उद्दण्ड बनायेंगे, तब उनमें से जो दायीं ओर का बैल होगा, वह विशेष उद्दण्ड होकर युवक किसान के पेट में अपना सींग घुसा देगा और इसी निमित्त से उसकी मृत्यु हो जायेगी। हम उसी का जीवात्मा लेने आये हैं।"
राजासाहब ! खुदा की कसम, मैंने उन यमदूतों से हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि 'यह घटना देखने की मुझे इजाजत मिल जाय।' उन्होंने इजाजत दे दी और मैं दूर एक पेड़ के पीछे खड़ा हो गया। थोड़ी ही देर में उस कच्चे रास्ते से बैलगाड़ी दौड़ती हुई आयी और जैसा उन्होंने कहा था ठीक वैसे ही बैलगाड़ी को झटका लगा, बैल उत्तेजित हुए, युवक किसान उन पर नियंत्रण पाने में असफल रहा। बैल धक्का मारते-मारते उसे दूर ले गये और बुरी तरह से उसके पेट में सींग घुसेड़ दिया और वह मर गया।"
राजाः "फिर क्या हुआ ?"
नौकरः "हजूर ! लड़के की मौत के बाद मैं पेड़ की ओट से बाहर आया और दूतों से पूछाः'इसकी रूह (जीवात्मा) कहाँ है, कैसी है ?"
वे बोलेः 'वह जीव हमारे हाथ नहीं आया। मृत्यु तो जिस निमित्त से थी, हुई किंतु वहाँ हुई जहाँ तुलसी का पौधा था। जहाँ तुलसी होती है वहाँ मृत्यु होने पर जीव भगवान श्रीहरि के धाम में जाता है। पार्षद आकर उसे ले जाते हैं।'
हुजूर ! तबसे मुझे ऐसा हुआ कि मरने के बाद मैं बिहिश्त में जाऊँगा कि दोजख में यह मुझे पता नहीं, इसले तुलसी की माला तो पहन लूँ ताकि कम से कम आपके भगवान नारायण के धाम में जाने का तो मौका मिल ही जायेगा और तभी से मैं तुलसी की माला पहनने लगा।'
कैसी दिव्य महिमा है तुलसी-माला धारण करने की ! इसीलिए हिन्दुओं में किसी का अंत समय उपस्थित होने पर उसके मुख में तुलसी का पत्ता और गंगाजल डाला जाता है, ताकि जीव की सदगति हो जाय।
जय श्रीकृष्णा

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संस्कृत को जानें भारत को पहचानें | आईए अभ्यास करें

इंग्लैण्ड मे अंग्रेजी
फ्रांस मे फ्रन्च
जर्मनी मे जर्मन्
तो भारत मे संस्कृत क्यों नही | संस्कृत को जानें भारत को पहचानें |
आईए अभ्यास करें
ॐ ॥ पारिवारिक नाम संस्कृत मे ......
जनक: - पिता , माता - माता
पितामह: - दादा , पितामही - दादी
प्रपितामह: - परदादा , प्रतितामही - परदादी
मातामह: - नाना , मातामही - नानी
प्रमातामह: - परनाना , प्रमातामही - परनानी
पितृव्य: - चाचा ,
पितृव्या- चाची
पितृस्वसा - बुआ
पैतृष्वस्रिय: - फुफेराभाई
पति: - पति , भार्या - पत्नी
पुत्र: / सुत: / आत्मज: - पुत्र , स्नुषा - पुत्र वधू
जामातृ - जँवाई ( दामाद ) , आत्मजा - पुत्री
पौत्र: - पोता , पौत्री - पोती
प्रपौत्र:,प्रपौत्री - पतोतरा
दौहित्र: - पुत्री का पुत्र , दौहितत्री - पुत्री का पुत्री
देवर: - देवर , यातृ,याता - देवरानी , ननांदृ,ननान्दा - ननद
अनुज: - छोटाभाई , अग्रज: - बड़ा भाई
भ्रातृजाया,प्रजावती - भाभी
भ्रात्रिय:,भ्रातृपुत्र: - भतीजा , भ्रातृसुता - भतीजी
पितृव्यपुत्र: - चचेराभाई , पितृव्यपुत्री - चचेरी बहन
आवुत्त: - बहनोई , भगिनी - बहिन , स्वस्रिय:,भागिनेय: - भानजा
नप्तृ,नप्ता - नाती
मातुल: - मामा , मातुलानी - मामी
मातृष्वसृपति - मौसा , मातृस्वसृ,मातृस्वसा - मौसी
मातृष्वस्रीय: - मौसेरा भाई
श्वशुर: - ससुर , श्वश्रू: - सास , श्याल: - साला
सम्बन्धीन् - समधी, सम्बन्धिनि - समधिन
पशव: ।।
उंट - उष्‍ट्र‚ क्रमेलकः
उद्बिलाव -
कछुआ - कच्‍छप:
केकडा - कर्कट: ‚ कुलीरः
कुत्‍ता - श्‍वान:, कुक्कुर:‚ कौलेयकः‚ सारमेयः
कुतिया – सरमा‚ शुनि
कंगारू - कंगारुः
कनखजूरा – कर्णजलोका
खरगोश - शशक:
गाय - गो, धेनु:
गैंडा - खड्.गी
गीदड (सियार) - श्रृगाल:‚ गोमायुः
गिलहरी - चिक्रोड:
गिरगिट - कृकलास:
गोह – गोधा
गधा - गर्दभ:, रासभ:‚ खरः
घोडा - अश्‍व:, सैन्‍धवम्‚ सप्तिः‚ रथ्यः‚ वाजिन्‚ हयः
चूहा - मूषक:
चीता - तरक्षु:, चित्रक:
चित्‍तीदार घोडा - चित्ररासभ:
छछूंदर - छुछुन्‍दर:
छिपकली – गृहगोधिका
जिराफ - चित्रोष्‍ट्र:
तेंदुआ – तरक्षुः
दरियाई घोडा - जलाश्‍व:
नेवला - नकुल:
नीलगाय - गवय:
बैल - वृषभ: ‚ उक्षन्‚ अनडुह
बन्‍दर - मर्कट:
बाघ - व्‍याघ्र:‚ द्वीपिन्
बकरी - अजा
बकरा - अज:
बनमानुष - वनमनुष्‍य:
बिल्‍ली - मार्जार:, बिडाल:
भालू - भल्‍लूक:
भैस - महिषी
भैंसा – महिषः
भेंडिया - वृक:
भेंड - मेष:
मकड़ी – उर्णनाभः‚ तन्तुनाभः‚ लूता
मगरमच्‍छ - मकर: ‚ नक्रः
मछली – मत्स्यः‚ मीनः‚ झषः
मेंढक - दर्दुरः‚ भेकः
लोमडी -लोमशः
शेर - सिंह:‚ केसरिन्‚ मृगेन्द्रः‚ हरिः
सुअर - सूकर:‚ वराहः
सेही – शल्यः
हाथी - हस्ति, करि, गज:
हिरन - मृग:
बाल - केशा:
2- माँग - सीमन्‍तम्
3- सफेद बाल - पलितकेशा:
4- मस्‍तक - ललाटम्
5- भौंह - भ्रू:
6- पलक - पक्ष्‍म:
7- पुतली - कनीनिका
8- नाक - नासिका
9- उपरी ओंठ - ओष्‍ठ:
10- निचले ओंठ - अधरम्
11- ठुड्डी - चिबुकम्
12- गाल - कपोलम्
13- गला - कण्‍ठ:
14- दाढी, मूँछ- श्‍मश्रु:
15- मुख - मुखम्
16- जीभ - जिह्वा
17- दाँत- दन्‍ता:
18- मसूढे - दन्‍तपालि:
19- कन्‍धा - स्‍कन्‍ध:
20- सीना - वक्षस्‍थलम्
21- हाँथ - हस्‍त:
22- अँगुली - अंगुल्‍य:
23- अँगूठा - अँगुष्‍ठ:
24- पेट - उदरम्
25- पीठ - पृष्‍ठम्
26- पैर - पाद:
27- रोएँ - रोम
।।संस्कृतं सर्वेषां संस्कृतं सर्वत्र।।
*शब्दान् जानीमहे वाक्यप्रयोगञ्च कुर्महे >
विमानम् ।
उपायनम् ।
यानम् ।
आसन्दः / आसनम् ।
नौका ।
पर्वत:।
रेलयानम् ।
लोकयानम् ।
द्विचक्रिका ।
ध्वज:।
शशक:।
व्याघ्रः।
वानर:।
अश्व:।
मेष:।
गज:।
कच्छप:।
पिपीलिका ।
मत्स्य:।
धेनु: ।
महिषी ।
अजा ।
कुक्कुट:।
मूषक:।
मकर:।
उष्ट्रः।
पुष्पम् ।
पर्णे (द्वि.व)।
वृक्ष:।
सूर्य:।
चन्द्र:।
तारक: / नक्षत्रम् ।
छत्रम् ।
बालक:।
बालिका ।
कर्ण:।
नेत्रे (द्वि.व)।
नासिका ।
जिह्वा ।
औष्ठौ (द्वि.व) ।
चपेटिका ।
बाहुः ।
नमस्कारः।
पादत्राणम् (पादरक्षक:) ।
युतकम् ।
स्यूत:।
ऊरुकम् ।
उपनेत्रम् ।
वज्रम् (रत्नम् ) ।
सान्द्रमुद्रिका ।
घण्टा ।
ताल:।
कुञ्चिका ।
⌚ घटी।
विद्युद्दीप:।
करदीप:।
विद्युत्कोष:।
छूरिका ।
✏ अङ्कनी ।
पुस्तकम् ।
कन्दुकम् ।
चषक:।
चमसौ (द्वि.व)।
चित्रग्राहकम् ।
सड़्गणकम् ।
जड़्गमदूरवाणी ।
☎ स्थिरदूरवाणी ।
ध्वनिवर्धकम् ।
⏳समयसूचकम् ।
⌚ हस्तघटी ।
जलसेचकम् ।
द्वारम् ।
भुशुण्डिका ।(बु?) ।
आणिः ।
ताडकम् ।
गुलिका/औषधम् ।
धनम् ।
✉ पत्रम् ।
पत्रपेटिका ।
कर्गजम्/कागदम् ।
सूचिपत्रम् ।
दिनदर्शिका ।
✂ कर्त्तरी ।
पुस्तकाणि ।
वर्णाः ।
दूरदर्शकम् ।
सूक्ष्मदर्शकम् ।
पत्रिका ।
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पारितोषकम् ।
⚽ पादकन्दुकम् ।
☕ चायम् ।

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अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करना जन्मसिद्ध अधिकार है !

अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करना जन्मसिद्ध अधिकार है !
(राष्ट्रभाषा-दिवस : १४ सितम्बर)
लॉर्ड मैकाले ने कहा था : ‘मैं यहाँ की शिक्षा-पद्धति में ऐसे कुछ संस्कार डाल जाता हूँ कि आनेवाले वर्षों में भारतवासी अपनी ही संस्कृति से घृणा करेंगे... मंदिर में जाना पसंद नहीं करेंगे... माता-पिता को प्रणाम करने में तौहीन महसूस करेंगे... वे शरीर से तो भारतीय होंगे लेकिन दिलोदिमाग से हमारे ही गुलाम होंगे...
हमारी शिक्षा-पद्धति में उसके द्वारा डाले गये संस्कारों का प्रभाव आज स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है । आज के विद्यार्थी पढ-लिख के ग्रेजुएट होकर बेरोजगार हो नौकर बनने के लिए भटकते रहते हैं ।
  ‘‘करोडों लोगों को अंग्रेजी की शिक्षा देना उन्हें गुलामी में डालने जैसा है । मैकाले ने शिक्षा की जो बुनियाद डाली, वह सचमुच गुलामी की बुनियाद थी । यह क्या कम जुल्म की बात है कि अपने देश में अगर मुझे इंसाफ पाना हो तो मुझे अंग्रेजी भाषा का उपयोग करना पडे ! हिन्दुस्तान को गुलाम बनानेवाले तो हम अंग्रेजी जाननेवाले लोग हैं । प्रजा की हाय अंग्रेजी पर नहीं बल्कि हम लोगों पर पडेगी ।
अंग्रेज़ी का हमारे जीवन पर कितना दुष्प्रभाव पडता है,: ‘‘विदेशी भाषा द्वारा शिक्षा पाने में जो बोझ दिमाग पर पडता है वह असह्य है । यह बोझ केवल हमारे बच्चे ही उठा सकते हैं लेकिन उसकी कीमत उन्हें ही चुकानी पडती है । वे दूसरा बोझ उठाने के लायक नहीं रह जाते । इससे हमारे ग्रेजुएट अधिकतर निकम्मे, कमजोर, निरुत्साही, रोगी और कोरे नकलची बन जाते हैं । उनमें खोज की शक्ति, विचार करने की ताकत, साहस, धीरज, बहादुरी, निडरता आदि गुण बहुत ही क्षीण हो जाते हैं । इससे हम नयी योजनाएँ नहीं बना सकते, बनाते हैं तो उन्हें पूरा नहीं कर सकते । कुछ लोग जिनमें उपरोक्त गुण दिखाई देते हैं, अकाल मृत्यु के शिकार हो जाते हैं ।
  ‘‘माँ के दूध के साथ जो संस्कार मिलते हैं और जो मीठे शब्द सुनाई देते हैं, उनके और पाठशाला के बीच जो मेल होना चाहिए, वह विदेशी भाषा द्वारा शिक्षा लेने से टूट जाता है । हम ऐसी शिक्षा के शिकार होकर मातृद्रोह करते हैं ।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भी मातृभाषा को बडे सम्मान से देखा और कहा था कि ‘‘अपनी भाषा में शिक्षा पाना जन्मसिद्ध अधिकार है । मातृभाषा में शिक्षा दी जाय या नहीं, इस तरह की कोई बहस होना ही बेकार है । उनकी मान्यता थी कि ‘जिस तरह हमने माँ की गोद में जन्म लिया है, उसी तरह मातृभाषा की गोद में जन्म लिया है । ये दोनों माताएँ हमारे लिए सजीव और अपरिहार्य हैं ।
गांधीजी ने मातृभाषा-प्रेम को व्यक्त करते हुए कहा कि ‘‘मेरी मातृभाषा में कितनी ही खामियाँ क्यों न हों, मैं उससे उसी तरह चिपका रहूँगा जिस तरह अपनी माँ की छाती से । वही मुझे जीवनदायी दूध दे सकती है । मैं अंग्रेजी को उसकी जगह प्यार करता हूँ लेकिन अंग्रेजी उस जगह को हडपना चाहती है जिसकी वह हकदार नहीं है तो मैं उससे सख्त नफरत करूँगा । मैं इसे दूसरी जबान के तौर पर जगह दूँगा लेकिन विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम, स्कूलों में नहीं । वह कुछ लोगों के सीखने की चीज हो सकती है, लाखों-करोडों की नहीं । रूस ने बिना अंग्रेजी के विज्ञान में इतनी उन्नति की है । आज अपनी मानसिक गुलामी की वजह से ही हम यह मानने लगे हैं कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता । मैं इस चीज को नहीं मानता ।
विद्यार्थियों को मातृभाषा में शिक्षा देना मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक रूप से अति आवश्यक है, क्योंकि विद्यालय आने पर बच्चे यदि अपनी भाषा को व्यवहार में आयी हुई देखते हैं तो वे विद्यालय में आत्मीयता का अनुभव करने लगते हैं । साथ ही उन्हें सब कुछ यदि उन्हींकी भाषा में पढाया जाता है तो उनके लिए सारी चीजों को समझना बहुत ही आसान हो जाता है । भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने भी ‘निज भाषा कहकर मातृभाषा के महत्त्व व प्रेम को अपने निम्नलिखित बहुचर्चित दोहे में व्यक्त किया है :
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल । बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।।
उन्नति पूरी है तबqह, जब घर उन्नति होय । निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ सब कोय ।।
रवीन्द्रनाथजी ने जापान का दृष्टांत देते हुए बताया है कि ‘‘इस देश में जितनी उन्नति हुई है, वह वहाँ की अपनी भाषा जापानी के ही कारण है । जापान ने अपनी भाषा की क्षमता पर भरोसा किया और अंग्रेजी के प्रभुत्व से जापानी भाषा को बचाकर रखा ।
जापानी इसके लिए धन्यवाद के पात्र हैं क्योंकि वे अमेरिका जाते हैं तो वहाँ भी अपनी मातृभाषा में ही बातें करते हैं । ...और हम भारतवासी ! भारत में रहते हैं फिर भी अपनी हिन्दी, गुजराती आदि भाषाओं में अंग्रेजी के शब्दों की मिलावट कर देते हैं । गुलामी की मानसिकता ने ऐसी गन्दी आदत डाल दी है ।

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तू शहरी कबूतरी, में छोरा गाँव  का,
तू फेन यो यो हनी सिंह की, में भक्त भोलेनाथ का..
       जय महाकाल
     हर हर महादेव


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रविवार, 13 सितंबर 2015

एक युवक बगीचे में बहुत गुस्से में बैठा था पास ही एक बुजुर्ग बैठे थे
उन्होने उस परेशान युवक से पूछा :- क्या हुआ बेटा क्यूं इतना परेशान हो
युवक ने गुस्से में अपनी पत्नी की गल्तीयों के बारे में बताया
बुजुर्ग ने मंद मंद मुस्कराते हुए युवक से पूछा बेटा क्या तुम बता सकते हो तुम्हारा धोबी कॊन है ?
युवक ने हैरानी से
पूछा :- क्या मतलब ?
बुजुर्ग ने कहा :- तुम्हारे मैले कपडे कॊन घोता है
युवक बोला :- मेरी पत्नी
बुजुर्ग ने पूछा :- तुम्हारा बावर्ची कॊन है
युवक :- मेरी पत्नी
बुजुर्ग :- तुम्हारे घर ऒर परिवार, सामान का ध्यान कॊन रखता है
युवक :- मेरी पत्नी
बुजुर्ग ने फिर पूछा :- कोई मेहमान आए तो उनका ध्यान कॊन रखता है
युवक :- मेरी पत्नी
बुजुर्ग :- परेशानी ऒर गम में कॊन साथ देता है ,
युवक :- मेरी पत्नी
बुजुर्ग :- अपने माता पिता का घर छोड़ कर जिंदगी भर के लिए तुम्हारे साथ कॊन आता है
युवक :- मेरी पत्नी
बुजुर्ग :- बीमारी में तुम्हारा ध्यान ऒर सेवा कॊन करता है
युवक :- मेरी पत्नी
बुजुर्ग बोले :- एक बात ऒर बताओ तुम्हारी पत्नी इतना काम ऒर सबका ध्यान रखती है क्या कभी उसने तुमसे इस बात के पैसे लिए
युवक :- कभी नहीं
इस बात पर बुजुर्ग बोले कि पत्नी की एक कमी तुम्हें नजर आ गई मगर उसकी इतनी सारी खुबियां तुम्हें कभी नजर नही आई


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जानिए कैसे ख़त्म हुए हमारे गुरुकुल

जानिए कैसे ख़त्म हुए हमारे गुरुकुल
कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद
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1858 में Indian Education Act बनाया गया।
इसकी ड्राफ्टिंग ‘लोर्ड मैकोले’ ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी। अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W. Litnar और दूसरा था Thomas Munro, दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था। 1823 के आसपास की बात है ये Litnar , जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था,उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है, और उस समय जब भारत में इतनी साक्षरता है
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मैकोले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी “देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था” को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह “अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था” लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे
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मैकोले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है:“कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।”इसलिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया, जब गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज के तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी, फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया और इस देश के गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया उनमे आग लगा दी, उसमें पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा- पीटा, जेल में डाला।
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1850 तक इस देश में ’7 लाख 32 हजार’ गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे ’7 लाख 50 हजार’, मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में ‘Higher Learning Institute’ हुआ करते थे उन सबमे 18 विषय पढाया जाता था और ये गुरुकुल समाज के लोग मिल के चलाते थे न कि राजा,महाराजा,और इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी।
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इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था, इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं और मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमें वो लिखता है कि:
“इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।”
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उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा।
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लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे,ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है।
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जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी।



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पेट की बीमारियों के घरेलू उपचार

पेट की बीमारियों के घरेलू उपचार
पेट में अम्लता (एसिडिटी/Acidity) व गैस (Gas formation in stomach) - एक लौंग और एक इलायची प्रत्येक भोजन व नाश्ता के बाद लें लेने पर कभी भी एसिडिटी व गैस नहीं होती ।
पेट की गैस (gas formation in stomach) - पेट की गैस की बीमारी यदि पुरानी न हो तो निम्नलिखित पेट की गैस-निवारक चटनी के सेवन से लाभ प्राप्त किया जा सकता है -
1. मुनक्का (बीज निकालकर) 30 ग्राम, 2. अदरक-6 ग्राम, 3. सौंफ बड़ी-6 ग्राम, 4. काली मिर्च-3 ग्राम, 5. सेंधा नमक - 3 ग्राम (या स्वादानुसार) ।
इन पांचों वस्तुओं को थोड़े पानी में पीसकर चटनी बना लें। इसे दोनों समय भोजन के समय रोटी या भात के साथ आवश्यकतानुसार 1-2 चम्मच चटनी की भांति चाटें । आपको पेट की गैस और पेट खराबी में आराम मिलेगा ।
गैस की पीड़ा से छुटकारा दिलाने वाला गैसहर चूर्ण (gas relief mixture) - छोटी हरड़ (बाल हर्र) एक किलो इन्हें साफ करके दही की छाछ (मही) में फुलाइए । सुबह फुलते छाछ में डाल दीजिए । दूसरे दिन सुबह छाछ मे से निकाल कर पानी से साफ करके, छाया में कपड़े पर डाल कर सुखा लीजिये। जब सूख जाएं तब पुन: छाछ में डालिये | छाछ में डालकर सुखाने में 'मही की भावना' देना कहते हैं | इस प्रकार इन हर्रों को मही की 3-4-6 (छ: तक) भावनाएं दीजिये | भावना देने के बाद, सूख जाने पर, इन्हें महीन पीस लीजिये | बारीक चलनी से छान लीजिये |
इस प्रकार बनाये गए एक किलो छोटी हरड़ के चूर्ण में पाव किलो अजवाइन पीस कर मिला लीजिये । फिर इस चूर्ण में काला नमक रुचि अनुसार मिला लीजिये । बस उत्तम गैसहर चूर्ण तैयार है ।
सेवन विधि - भोजन के बाद सेहत के अनुसार, यह चूर्ण गुनगुने पानी से लें । (ठंडा पानी से भी ले सकते है) इसके सेवन से - 1. गैस की तकलीफ कभी नहीं होगी । 2. तकलीफ होने पर 5-6 मिनिट मे आराम होता है । 3. पाचन शक्ति भी बढ़ती है । दस्त साफ होते हैं । गैस का दर्द दूर करने के लिये यह अचूक, शर्तिया दवा है ।
चूर्ण बनाने की दूसरी विधि - इन हर्रों को रेत में भूंज लीजिये । खूब फूलती है । इन्हें पीस लीजिये । जल्दी पिस जाते है ।
तीसरी विधि - इस चूर्ण में 60 ग्राम सनाय (सोनामुखी) की पत्ती को हलका भुनकर चूर्ण बनाकर डालने से पुराने से पुराना बध्दकोष्ट (कब्ज) भी हफते भर में ठीक हो जाता है । सनाय की पत्ती, बिना भून का डालने से, पेट में भरोड़ आती है ।


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भारत  पूरी दुनिया में ऐसी जगह है, जहां के लोग कड़कड़ाती ठंड, बरसात और चिलचिलाती गर्मी का आनंद उठाते हैं. भारत वो देश है जहां नदियां, समंदर, पहाड़ियां, घाटियां, समतल मैदान और रेगिस्तान के साथ-साथ ऐसा सब-कुछ है जिस पर भारतीय को गर्व है. न सिर्फ़ नजारे बल्कि कुछ ऐसे अद्भुत जानवर भी जिन्हें आप भारत के अलावा कहीं और नहीं पा सकते, जिन्हें देखने के लिए दुनिया भर से सैलानी भारत आते हैं और मंत्रमुग्ध होकर वापस जाते हैं.



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शनिवार, 12 सितंबर 2015

मुख्य द्वार की सही दिशा

इन्कमटैक्स वालों को एक वर्ष का हिसाब देनेमें इतनी घबराहट होती है
तो ईश्वरको सारे जीवनका हिसाब देते समय क्या दशा होगी l
सोचो !

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स्टेशन से एक 18-19 वर्षीय खूबसूरत लड़की चढ़ी जिसका मेरे सामनेवाली बर्थ पर रिजर्वेशन था उसके पापा उसे छोड़ने आये थे।
अपनी सीट पर वैठ जाने के बाद उसने अपने पिता से कहा “डैडी आप जाइये अब, ट्रेन तो दस मिनट खड़ी रहेगी यहाँ दस मिनट का स्टॉपेज है।
“उसके पिता ने उदासी भरे शब्दों के साथ कहा “कोई बात नहीं बेटा, 10 मिनट और तेरे साथ बिता लूँगा, अब तो तुम्हारे क्लासेज सुरु हो रहे है काफी दिन बाद आओगी तुम।
“लड़की शायद दिल्ली में अध्ययन कर रही होगी क्योंकि उम्र और वेशभूषा से विवाहित नहीं लग रही थी ।
ट्रेन चलने लगी तो उसने खिड़की से बाहर प्लेटफार्म पर खड़े पिता को हाथ हिलाकर बाय कहा। “बायडैडी…. अरे ये क्या हुआ आपको! अरे नहीं प्लीज”पिता की आँखों में आंसू थे।
ट्रेन अपनी रफ्तार पकडती जा रही थी और पिता रुमाल से आंसू पोंछते हुए स्टेशन से बाहर जा रहे थे।
लड़की ने फोन लगाया.. “हेलो मम्मी..ये क्या है यार! जैसे ही ट्रेन स्टार्ट हुई डैडी तो रोने लग गये.. अब मैं नेक्स्ट टाइम कभी भी उनको सी-ऑफ के लिए नहीं कहूँगी. भले अकेली आ जाउंगी ऑटो से..
अच्छा बाय..पहुँचते ही कॉल करुँगी.
डैडी का खयाल रखना ओके।
”मैं कुछ देर तक लड़की को सिर्फ इस आशा सेदेखता रहा कि पारदर्शी चश्मे से झांकती उन आँखों से मुझे अश्रुधारा दिख जाए पर मुझे निराशा ही हाथ लगी. उन आँखों में नमी भी नहीं थी।
कुछ देर बाद लड़की ने फिर किसी को फोन लगाया- “हेलोजानू कैसे हो…. मैं ट्रेन में बैठ गई हूँ..
हाँ अभी चली है यहाँ से,कल अर्ली-मोर्निंग दिल्ली पहुँच जाउंगी..
लेने आ जाना. लव यूटू यार, मैंने भी बहुत मिसकिया तुम्हे..
बस कुछ घंटे और सब्र करलो कल तो पहुँच ही जाऊँगी।”
मैं मानता हूँकि आज के युगमें बच्चों को उच्चशिक्षा हेतु बाहर भेजना आवश्यक है पर इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि इसके कई दुष्परिणाम भी हैं।
मैं यह नहीं कह रहा कि बाहर पढने वाले सारे लड़के लड़कियां ऐंसे होते हैं

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किसी विदेशी महिला और उससे पैदा होने वाले बच्चे के हाथों में कभी सत्ता नहीं देनी चाहिए :

चाणक्य : किसी विदेशी महिला और उससे पैदा होने वाले बच्चे के हाथों में कभी सत्ता नहीं देनी चाहिए :-
कारण पढ़िए :--
जब यूनानी आक्रमणकारी सेल्यूकस चन्द्रगुप्त मौर्य से हार गया और उसकी सेना बंदी बना ली गयी तब उसने अपनी खूबसूरत बेटी हेलेना के विवाह का प्रस्ताव चन्द्रगुप्त मोर्य के पास भेजा.
सेल्यूकस की सबसे छोटी बेटी हेलेन बेहद खुबसूरत थी, उसका विवाह आचार्य चाणक्य ने प्रस्ताव मिलने पर सम्राट चन्द्रगुप्त से कराया पर उन्होने विवाह से पहले हेलेन और चन्द्रगुप्त से कुछ शर्तें रखीं ; जिसके बाद ही उन दोनों का विवाह हुआ,
1. पहली शर्त यह थी की उन दोनों से उत्पन्न संतान उनके राज्य की उत्तराधिकारी नहीँ होगी, और इसका कारण बताया कि हेलेन एक विदेशी महिला है, और उसका भारत के पूर्वजों से उसका नाता नहीँ है, भारतीय संस्कृति से हेलेन पूर्णतः अनभिग्य है.
2. दूसरा कारण बताया कि हेलेन विदेशी शत्रुओं की बेटी है, उसकी निष्ठा कभी भारत के साथ नहीं हो सकती.
3. तीसरा कारण बताया कि हेलेन का बेटा विदेशी माँ का पुत्र होने के नाते उसके प्रभाव से कभी मुक्त नहीँ हो पायेगा और भारतीय माटी, भारतीय लोगों के प्रति पूर्ण निष्ठावान नहीं हो पायेगा.
4. एक और शर्त चाणक्य ने हेलेन के सामने रखी कि वह कभी भी चन्द्रगुप्त के राज्य कार्य में हस्तक्षेप नहीँ करेगी और राजनीति और प्रशासनिक अधिकार से पूर्णतया विरत रहेगी; परंतु गृहस्थ जीवन में हेलेन का पूर्ण अधिकार होगा.

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ॐॐॐशंख की जानने योग्य बातेंॐॐॐ

ॐॐॐशंख की जानने योग्य बातेंॐॐॐ
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
शंख दो प्रकार के होते हैं – दक्षिणावर्त एवं वामावर्त। दक्षिणावर्त शंख पुण्य योग से मिलता है। यह जिसके यहाँ होता है उसके यहाँ लक्ष्मी जी निवास करती हैं। यह त्रिदोषशामक, शुद्ध एवं नवनिधियों में से एक निधि है तथा ग्रह एवं गरीबी की पीड़ा, क्षय, विष, कृशता एवं नेत्ररोग का नाश करता है। जो शंख सफेद चन्द्रकान्तमणि जैसा होता है वह उत्तम माना जाता है। अशुद्ध शंख गुणकारी नहीं होते, उन्हें शुद्ध करके ही दवा के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।
भारत के महान वैज्ञानिक श्री जगदीशचन्द्र बसु ने सिद्ध करके बताया है कि शंख को बजाने पर जहाँ तक उसकी ध्वनि पहुँचती वहाँ तक रोग उत्पन्न करने वाले कई प्रकार के हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। इसीलिए अनादिकाल से प्रातःकाल एवं संध्या के समय मंदिरों में शंख बजाने का रिवाज चला आ रहा है। संध्या के समय हानिकारक जंतु प्रकट होकर रोग उत्पन्न करते हैं, अतः उस समय शंख बजाना आरोग्य के लिए लाभदायक हैं और इससे भूत-प्रेत, राक्षस आदि भाग जाते हैं।
औषधि-प्रयोगः
मात्राः अधोलिखित प्रत्येक रोग में 50 से 250 मि.ग्रा. शंखभस्म ले सकते हैं।
गूँगापनः गूँगे व्यक्ति के द्वारा प्रतिदिन 2-3 घंटे तक शंख बजवायें। एक बड़े शंख में 24 घंटे तक रखा हुआ पानी उसे प्रतिदिन पिलायें, छोटे शंखों की माला बनाकर उसके गले में पहनायें तथा 50 से 250 मि.ग्रा. शंखभस्म सुबह शाम शहद साथ चटायें। इससे गूँगापन में आराम होता है।
तुतलापनः 1 से 2 ग्राम आँवले के चूर्ण में 50 से 250 मि.ग्रा. शंखभस्म मिलाकर सुबह शाम गाय के घी के साथ देने से तुतलेपन में लाभ होता है।
तेजपात (तमालपत्र) को जीभ के नीचे रखने से रूक रूककर बोलने अर्थात् तुतलेपन में लाभ होता है।
सोते समय दाल के दाने के बराबर फिटकरी का टुकड़ा मुँह में रखकर सोयें। ऐसा नित्य करने से तुतलापन ठीक हो जाता है।
दालचीनी चबाने व चूसने से भी तुतलापन में लाभ होता है।
दो बार बादाम प्रतिदिन रात को भिगोकर सुबह छील लो। उसमें 2 काली मिर्च, 1 इलायची मिलाकर, पीसकर 10 ग्राम मक्खन में मिलाकर लें। यह उपाय कुछ माह तक निरंतर करने से काफी लाभ होता है।
मुख की कांति के लिएः शंख को पानी में घिसकर उस लेप को मुख पर लगाने से मुख कांतिवान बनता है।
बल-पुष्टि-वीर्यवर्धकः शंखभस्म को मलाई अथवा गाय के दूध के साथ लेने से बल-वीर्य में वृद्धि होती है।
पाचन, भूख बढ़ाने हेतुः लेंडीपीपर का 1 ग्राम चूर्ण एवं शंखभस्म सुबह शाम शहद के साथ भोजन के पूर्व लेने से पाचनशक्ति बढ़ती है एवं भूख खुलकर लगती है।
श्वास-कास-जीर्णज्वरः 10 मि.ली. अदरक के रस के साथ शंखभस्म सुबह शाम लेने से उक्त रोगों में लाभ होता है।
उदरशूलः 5 ग्राम गाय के घी में 1.5 ग्राम भुनी हुई हींग एवं शंखभस्म लेने से उदरशूल मिटता है।
अजीर्णः नींबू के रस में मिश्री एवं शंखभस्म डालकर लेने से अजीर्ण दूर होता है।
खाँसीः नागरबेल के पत्तों (पान) के साथ शंखभस्म लेने से खाँसी ठीक होती है।
आमातिसारः (Diarhoea) 1.5 ग्राम जायफल का चूर्ण, 1 ग्राम घी एवं शंखभस्म एक एक घण्टे के अंतर पर देने से मरीज को आराम होता है।
आँख की फूलीः शहद में शंखभस्म को मिलाकर आँखों में आँजने से लाभ होता है।
परिणामशूल (भोजन के बाद का पेट दर्द)- गरम पानी के साथ शंखभस्म देने से भोजन के बाद का पेटदर्द दूर होता है।
प्लीहा में वृद्धिः (Enlarged Spleen) अच्छे पके हुए नींबू के 10 मि.ली. रस में शंखभस्म डालकर पीने से कछुए जैसी बढ़ी हुई प्लीहा भी पूर्ववत् होने लगती है।
सन्निपात-संग्रहणीः (Sprue) शंखभस्म को 3 ग्राम सैंधव नमक के साथ दिन में तीन बार (भोजन के बाद) देने से कठिन संग्रहणी में भी आराम होता है।
हिचकी: (Hiccup)-- मोरपंख के 50 मि.ग्रा. भस्म में शंखभस्म मिलाकर शहद के साथ डेढ़-डेढ़ घंटे के अंतर पर चाटने से लाभ होता है।



भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
मो. 0917891529862

शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

जय मेवाड़


पानी आकाश से गिरे तो........बारिश,
आकाश की ओर उठे तो........भाप,
अगर जम कर गिरे तो...........ओले,
अगर गिर कर जमे तो...........बर्फ,
फूल पर हो तो....................ओस,
फूल से निकले तो................इत्र,
जमा हो जाए तो..................झील,
बहने लगे तो......................नदी,
सीमाओं में रहे तो................जीवन,
सीमाएं तोड़ दे तो................प्रलय,
आँख से निकले तो..............आँसू,
शरीर से निकले तो..............पसीना,
और
श्री हरी के चरणों को छू कर निकले तो............................
...चरणामृत

भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
मो. 0917891529862

 
नासिक में नारायण सेवा संस्थान द्वारा हो रही भागवत कथा का सीधा प्रसारण देखें आस्था भजन चैनल पर प्रातः 10 से दोप. 2 बजे तक।

‪#‎Spiritual‬ Bhagwat Katha event by Narayan Seva Sansthan ‪#‎NGO‬ at Nasik. Watch its Live telecast on Astha Bhajan channel.
www.nsskumbh.org
#Spirituality #NGO #NSSKumbh #BhagwatKatha #Kumbh2015 #NasikKumbh
 

भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
मो. 0917891529862
 

कौन कहता है कि हुमायूँ ने कर्मावती की रक्षा की थी ???

कौन कहता है कि हुमायूँ ने कर्मावती की रक्षा की थी ???
क्या इतिहास भी मिलावटी पढेंगे ???
इतिहास में चितौड़ की रानी कर्मवती जिसे कर्णावती भी कहा जाता है द्वारा हुमायूं को राखी भेजने व उस राखी का मान रखने हेतु हुमायूं द्वारा रानी की सहायता की बड़ी बड़ी बातें लिखी हुईं है. इस प्रकरण के बहाने हुमायूं को रिश्ते निभाने वाला इंसान साबित करने की झूंठी चेष्टा की गई. चितौड़ पर गुजरात के बादशाह बहादुरशाह द्वारा आक्रमण के वक्त चितौड़ का शासक महाराणा विक्रमादित्य अयोग्य शासक था. चितौड़ के ज्यादातर सामंत उससे नाराज थे और उनमें से ज्यादातर बहादुरशाह के पास भी चले गए थे. ऐसी स्थिति में चितौड़ पर आई मुसीबत से निपटने के लिए रानी कर्मवती ने सेठ पद्मशाह के हाथों हुमायूं को भाई मानते हुए राखी भेजकर सहायता का अनुरोध किया. हुमायूं भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के रिश्ते का महत्त्व तब से जानता था, जब वह बुरे वक्त में अमरकोट के राजपूत शासक के यहाँ शरणागत था.


हुमायूं उस वक्त ग्वालियर मे था , चाहता तो अपनी बहन की मदद को तुरन्त पहुँच जाता लेकिन ग्वालियर में हुमायूँ को बहादुरशाह का पत्र मिला जिसमें उसने लिखा था कि वह तो काफिरों के खिलाफ जेहाद कर रहा है. यह पढ़ते ही हुमायूं भारतीय संस्कृति के उस महत्त्व को जिसकी वजह से उसे कभी शरण मिली, उसकी जान बची थी को भूल गया और ग्वालियर से आगे नहीं बढ़ा. काफिरों के खिलाफ जेहाद के सामने हुमायूं भाई-बहन का रिश्ता भूल गया, उसे इस्लाम के प्रसार के आगे ये पवित्र रिश्ता बौना लगने लगा और वह एक माह ग्वालियर में रुकने के बाद 4 मार्च 1533 को वापस आगरा लौट गया.
यही नहीं, जब हुमायूं का एक सरदार मुहम्मद जमा बागी होकर बयाना से भागकर बहादुरशाह की शरण में जा पहुंचा. हुमायूं के उस बागी को वापस मांगने पर बहादुरशाह ने मना कर दिया. तब हुमायूं ने गुजरात पर आक्रमण कर दिया और बहादुरशाह के सेनापति तातारखां को बुरी तरह हरा दिया. उस वक्त बहादुरशाह ने चितौड़ पर दूसरी बार घेरा डाला था. मुग़ल सेना से अपनी सेना के हार का समाचार मिलते ही, बहादुरशाह ने चितौड़ से घेरा उठाकर अपने राज्य रक्षार्थ प्रस्थान करने की योजना बनाई.
लेकिन उसके एक सरदार ने साफ़ किया कि जब वह चितौड़ पर घेरा डाले है, हुमायूं हमारे खिलाफ आगे नहीं बढेगा. क्योंकि चितौड़ पर बहादुरशाह का घेरा हुमायूं की नजर में काफिरों के खिलाफ जेहाद था. हुआ भी यही हुमायूं सारंगपुर में रुक कर चितौड़ युद्ध के परिणाम की प्रतीक्षा करने लगा. लेकिन कर्णावती की राखी की लाज बचाने जेहाद के बीच बहादुरशाह से दुश्मनी होने के बावजूद नहीं आया.
आखिर चितौड़ विजय के बाद बहादुरशाह हुमायूं से युद्ध के लिए गया और मन्दसौर के पास मुग़ल सेना से हुए युद्ध में हार गया. उसकी हार की खबर सुनते ही चितौड़ के 7000 राजपूत सैनिकों ने चितौड़ पर हमला कर उसके सैनिकों को भगा दिया और विक्रमादित्य को बूंदी से लाकर पुन: गद्दी पर आरुढ़ कर दिया.
राजपूत वीरों द्वारा पुन: चितौड़ लेने का श्रेय भी कुछ दुष्प्रचारियों ने हुमायूं को दिया कि हुमायूं ने चितौड़ को वापस दिलवाया. जबकि हकीकत में हुमायूँ ने बहादुरशाह से चितौड़ के लिए कभी कोई युद्ध नहीं किया. बल्कि बहादुरशाह से बैर होने के बावजूद वह चितौड़ मामले में बहादुरशाह के खिलाफ नहीं उतरा.
ये है काला सच !!!

भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
मो. 0917891529862

गुरुवार, 10 सितंबर 2015

हिन्दु क्यों दुर हो रहा है अपने धर्म से ?

‎हिन्दु क्यों दुर हो रहा है अपने धर्म से ?
हिन्दु को राम राम कहने में क्यों आती है शर्म ?
हिन्दु तिलक लगाने में क्यों हिचकता है ?
हिन्दु मंदिर जाने में क्यों शरमाता है ?
कारण एक ही है.........
आप फिल्में तो देखते ही हैं उसमें आपने देखा होगा की फिल्म में जो नमस्ते करता है ,
राम राम कहता है ,
भगवान का नाम लेकर बात करता है ,
बात करते करते हे!राम बोलता है , उस पर सब हंसते हैं
उसकी हंसी उड़ाते हैं ,
उसे गांव वाला कहा जाता है..
कुछ दृश्यो में दिखाया जाता है कि लड़कियां उन लड़को को बिलकुल भाव नहीं दे रही जिनके गले में रुद्राक्ष की माला है ,
तिलक लगा रखा है , भगवान
का नाम ले रहा है , मंदीर जा रहा है..
क्या किसी फिल्म में किसी दुसरे धर्म को मानने पर उसे इस तरह गांव वाला दिखाया गया हो जरा याद किजिए..
नहीं याद आ रहा ना , आयेगा भी नहीं क्योंकी एसा किसी फिल्म
में दिखाया ही नहीं गया है..
चलिए और गोर से समझ लेते हैं आप किसी हिन्दु के छोटे बच्चे को राम राम बोलो वो आपको बदले में क्या जवाब देगा..
फिर एक दुसरे धर्म के बच्चे को उसके धर्म के अनुसार कहिये वो आपको क्या जवाब देता है..
आप खुद समझ जायेंगे की हमारी आने वाली पिढ़ी कहा जा रही है..
एक और उदाहरण.......
अब अपने आफिस में किसी हिन्दु को राम राम बोलो..
आप भी जानते हैं सब हंसने लगेंगे
आपको हाय हलो कहने को कहेंगे..
अब अगर कोई गलती हो जाये तो हे!राम बोलिये
सब फिर हंसेंगे पर
ओह गॉड बोलिये कोई नहीं हंसेगा..
अब अगर आपके फ्रेंड्स में कोई मुस्लिम हो तो उसे अस-
सलाम-वालेकुम बोलिए चाहे वो कितना भी पढ़ा लिखा हो वो हंसेगा नहीं आपको वालेकुम-
अस-सलाम जरुर बोलेगा..
और आपके अंदर हिम्मत हो तो उस पर हंस कर बताइये..
पर
हिन्दु को राम राम बोलो वो चार दिन तक आपकी हंसी उड़ायेगा..
ये सब हिन्दुओं के दिमाग में किसने भरा की राम राम बोलने वाला गांव वाला और हाय हैलो बोलने वाला पढ़ा लिखा और हाई-फाई..
जवाब है .......
फिल्मों ने ये एक षडयंत्र है हिन्दुओं के खिलाफ ताकी हिन्दु दुर हो जाये अपने धर्म से..
जरा सोचिये
हिन्दुस्तान में लगभग 75 करोड़ हिन्दु है
ये फिल्में अपनी कमाई का 70% हमसे ही कमाते हैं और हमारे ही धर्म की कब्र खोद रहे हैं..
हाय हाय नहीं राम राम बोलो
क्योंकी हाय हाय तो हिजड़े भी बोलते हैं..
अब एक किस्सा सुनो..
पिछले संडे को मैने सोचा सबको राम राम बोल के देखुं तो संडे को घुमने का मुड़ था सब दोस्त एक मॉल के बाहर मिले कुछ लड़कियां भी थी..
तो वहां मैने सोचा चलो सबको राम राम बोलता हुं और सबके सामने जाते ही कहा राम राम दोस्तो..
जैसा की होना था साले पेट पकड़-पकड़ कर हंसने लगे..
मैं भी कमर कस के गया था मैने वहां मेरे एक दोस्त इमरान को बुला लिया था थोडी देर बाद जब
वो आया तो मैने उसे अस-सलाम-वालेकुम कहा उसने
तुरंत वालेकुम-अस-सलाम कहा..
सबकी शकल देखने लायक थी..
मैं बोला दम हो तो अब हंस के
दिखाओ..
आप भी समझ गये होंगे.. की हमें क्या करना है..
फिर भी याद रखने के लिए
अपने घर में छोटे बच्चो को राम राम कहिये.
उनसे भी जवाब में राम राम कहने की आदत डालिए.
उन्हे रोज़ मंदिर घुमाने लेकर जाइए.
हिन्दु देवी देवताओं की कहानी सुनाये.
महाराणा प्रताप , शिवाजी राव जैसे वीरो की कहानी सुनाये ना की अकबर बीरबल और
सिकंदरो की.
उन्हे तिलक लगाने की आदत डालें.
गायत्री मंत्र , हनुमान चालीसा , व महा मृत्युन्ज्य मंत्र याद करायें.
गलती होने पर हे!राम बोलने की आदत डालें बजाय ओह गॉड के.
मुसीबत आये तो "हे! हनुमान रक्षा करो" बोले बजाय
"ओह गॉड सेव मी" के.
ये सारी बातें आप भी अपनाये व अमल में लायें.
हिन्दु संस्कृति बचेगी ,
तब ही हिन्दु बचेगा ........
जय श्री राम
ईच्छा है तो इस मैसेज को आगे बढाऔ ....जय हिन्द
🚩जय हिन्दू रा🚩

किशन लाल डांगी 
भमावत 
थूर , उदयपुर 
मो. 0917891529862

हल्‍दी वाला दूध पीने के 7 लाभ

आरोग्यं :हल्‍दी वाला दूध पीने के 7 लाभ
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बहुत फायदेमंद हैं हल्‍दी वाला दूध। दूध जहां कैल्शियम से भरपूर होता है वहीं दूसरी तरफ हल्‍दी में एंटीबायोटिक होता है। दोनों ही आपके स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बहुत लाभकारी होते हैं। और अगर दोनों को एक साथ मिला लिया जाये तो इनके लाभ दोगुना हो जायेगें। आइए हल्‍दी वाले दूध के ऐसे फायदों को जानकर आप इसे पीने से खुद को रोक नहीं पायेगें ।
1.सांस संबंधी समस्‍याओं में लाभकारी
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हल्दी में एंटी-माइक्रोबियल गुण होते है, इसलिए इसे गर्म दूध के साथ लेने से दमा, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों में कफ और साइनस जैसी समस्याओं में आराम होता है। यह मसाला आपके शरीर में गरमाहट लाता है और फेफड़े तथा साइनस में जकड़न से तुरन्त राहत मिलती है। साथ ही यह बैक्टीरियल और वायरल संक्रमणों से लड़ने में मदद करता है
2. मोटापा कम करें
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हल्दी वाले दूध को पीने से शरीर में जमी अतिरिक्त चर्बी घटती है। इसमें मौजूद कैल्शियम और मिनिरल और अन्‍य पोषक तत्व वजन घटाने में मदगार होते है।
3. हडि्डयों को मजबूत बनाये
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दूध में कैल्शियम और हल्दी में एंटीऑक्सीडेंट की मौजूदगी के कारण हल्दी वाला दूध पीने से हडि्डयां मजबूत होती है और साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। हल्दी वाले दूध को पीने से हड्डियों में होने वाले नुकसान और ऑस्टियोपोरेसिस की समस्‍या में कमी आती है ।
4. खून साफ करें
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आयुर्वेदिक परम्‍परा में हल्‍दी वाले दूध को एक बेहतरीन रक्त शुद्ध करने वाला माना जाता है। यह रक्त को पतला कर रक्त वाहिकाओं की गन्दगी को साफ करता है। और शरीर में रक्त परिसंचरण को मजबूत बनाता है।
5. पाचन संबंधी समस्‍याओं में लाभकारी
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हल्‍दी वाला दूध एक शक्तिशाली एंटी-सेप्टिक होता है। यह आंतों को स्‍वस्‍थ बनाने के साथ पेअ के अल्‍सर और कोलाइटिस के उपचार में भी मदद करता है। इसके सेवन से पाचन बेहतर होता है और अल्‍सर, डायरिया और अपच की समस्‍या नहीं होती है।
6. दर्द कम करें
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हल्दी वाले दूध के सेवन से गठिया का निदान होता हैं। साथ ही इसका रियूमेटॉइड गठिया के कारण होने वाली सूजन के उपचार के लिये प्रयोग किया जाता है। यह जोड़ो और मांसपेशियों को लचीला बनाता हकै जिससे दर्द कम हो जाता है
7. गहरी नींद में सहायक
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हल्‍दी शरीर में ट्रीप्टोफन नामक अमीनो अम्ल को बनाता है जो शान्तिपूर्वक और गहरी नींद में सहायक होता है। इसलिए अगर आप रात में ठीक से सो नहीं पा रहें है या आपको बैचेनी हो रही है तो सोने से आधा घंटा पहले हल्दी वाला दूध पीएं। इससे आपको गहरी नींद आएगी और नींद ना आने की समस्या दूर हो जाएगी।


किशन लाल डांगी 
भमावत 
थूर , उदयपुर 
मो. 0917891529862

बुधवार, 9 सितंबर 2015

खड़ाऊ पहनने के पीछे हमारे पूर्वजों की सोच

क्यों पहनते थे खड़ाऊ ?:--
पुरातन समय में हमारे पूर्वज पैरों में लकड़ी के खड़ाऊ
(चप्पल) पहनते थे। पैरों में लकड़ी के खड़ाऊ पहनने के
पीछे भी हमारे पूर्वजों की सोच
पूर्णत: वैज्ञानिक थी।
गुरुत्वाकर्षण का जो सिद्धांत वैज्ञानिकों ने बाद में प्रतिपादित किया उसे हमारे
ऋषि-मुनियों ने काफी पहले ही समझ लिया था।
उस सिद्धांत के अनुसार शरीर में प्रवाहित हो रही
विद्युत तरंगे गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी द्वारा अवशोषित कर
ली जाती हैं । यह प्रक्रिया अगर निरंतर चले तो
शरीर की जैविक शक्ति(वाइटल्टी
फोर्स) समाप्त हो जाती है।
इसी जैविक शक्ति को बचाने के लिए हमारे पूर्वजों ने पैरों में
खड़ाऊ पहनने की प्रथा प्रारंभ की ताकि
शरीर की विद्युत तंरगों का पृथ्वी
की अवशोषण शक्ति के साथ संपर्क न हो सके।
इसी सिद्धांत के आधार पर खड़ाऊ पहनी जाने
लगी।
उस समय चमड़े का जूता कई धार्मिक, सामाजिक कारणों से समाज के एक
बड़े वर्ग को मान्य न था और कपड़े के जूते का प्रयोग हर
कहीं सफल नहीं हो पाया।
जबकि लकड़ी के खड़ाऊ पहनने से किसी धर्म व
समाज के लोगों के आपत्ति नहीं थी
इसीलिए यह अधिक प्रचलन में आए। कालांतर में
यही खड़ाऊ ऋषि-मुनियों के स्वरूप के साथ जुड़ गए।
खड़ाऊ के सिद्धांत का एक और सरलीकृत स्वरूप हमारे
जीवन का अंग बना वह है पाटा। डाइनिंग टेबल ने हमारे
भारतीय समाज में बहुत बाद में स्थान पाया है। पहले भोजन
लकड़ी की चौकी पर रखकर तथा
लकड़ी के पाटे पर बैठकर ग्रहण किया जाता था। भोजन करते
समय हमारे शरीर में सबसे अधिक रासायनिक क्रियाएं
होती हैं। इन परिस्थिति में शरीरिक ऊर्जा के
संरक्षण का सबसे उत्तम उपाय है चौकियों पर बैठकर भोजन करना चाहिये

खड़ाऊ पहनने का मुख्य लाभ ब्रह्मचर्य के रूप मे मिलता है आप आज
के समय में भी हफ्ते मे एक दिन खड़ाऊ पहन कर यह
अनुभव कर सकते है । इसका सीधा संबंध पैर के अँगूठे से
होता है खड़ाऊ पहन कर चलने के लिए अँगूठे ही सहायक
होते है । और इन अँगूठो पर पड़ने वाला दबाव पाचन क्रिया मे
भी लाभकारी होता है ।
जिसकी नाप (नाभी) बार बार खिसकी
रहती हो उसे सुबह कुछ कदम खड़ाऊ पहन कर ठहलना
चाहिए ।
       
                                                                                                         किशन लाल डांगी
                                                                                                              [ भमावत ]
                                                                                                              थूर, उदयपुर
                                                                                                         मो.  7891529862

जय श्री राम

जय श्री राम