शनिवार, 12 सितंबर 2015

स्टेशन से एक 18-19 वर्षीय खूबसूरत लड़की चढ़ी जिसका मेरे सामनेवाली बर्थ पर रिजर्वेशन था उसके पापा उसे छोड़ने आये थे।
अपनी सीट पर वैठ जाने के बाद उसने अपने पिता से कहा “डैडी आप जाइये अब, ट्रेन तो दस मिनट खड़ी रहेगी यहाँ दस मिनट का स्टॉपेज है।
“उसके पिता ने उदासी भरे शब्दों के साथ कहा “कोई बात नहीं बेटा, 10 मिनट और तेरे साथ बिता लूँगा, अब तो तुम्हारे क्लासेज सुरु हो रहे है काफी दिन बाद आओगी तुम।
“लड़की शायद दिल्ली में अध्ययन कर रही होगी क्योंकि उम्र और वेशभूषा से विवाहित नहीं लग रही थी ।
ट्रेन चलने लगी तो उसने खिड़की से बाहर प्लेटफार्म पर खड़े पिता को हाथ हिलाकर बाय कहा। “बायडैडी…. अरे ये क्या हुआ आपको! अरे नहीं प्लीज”पिता की आँखों में आंसू थे।
ट्रेन अपनी रफ्तार पकडती जा रही थी और पिता रुमाल से आंसू पोंछते हुए स्टेशन से बाहर जा रहे थे।
लड़की ने फोन लगाया.. “हेलो मम्मी..ये क्या है यार! जैसे ही ट्रेन स्टार्ट हुई डैडी तो रोने लग गये.. अब मैं नेक्स्ट टाइम कभी भी उनको सी-ऑफ के लिए नहीं कहूँगी. भले अकेली आ जाउंगी ऑटो से..
अच्छा बाय..पहुँचते ही कॉल करुँगी.
डैडी का खयाल रखना ओके।
”मैं कुछ देर तक लड़की को सिर्फ इस आशा सेदेखता रहा कि पारदर्शी चश्मे से झांकती उन आँखों से मुझे अश्रुधारा दिख जाए पर मुझे निराशा ही हाथ लगी. उन आँखों में नमी भी नहीं थी।
कुछ देर बाद लड़की ने फिर किसी को फोन लगाया- “हेलोजानू कैसे हो…. मैं ट्रेन में बैठ गई हूँ..
हाँ अभी चली है यहाँ से,कल अर्ली-मोर्निंग दिल्ली पहुँच जाउंगी..
लेने आ जाना. लव यूटू यार, मैंने भी बहुत मिसकिया तुम्हे..
बस कुछ घंटे और सब्र करलो कल तो पहुँच ही जाऊँगी।”
मैं मानता हूँकि आज के युगमें बच्चों को उच्चशिक्षा हेतु बाहर भेजना आवश्यक है पर इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि इसके कई दुष्परिणाम भी हैं।
मैं यह नहीं कह रहा कि बाहर पढने वाले सारे लड़के लड़कियां ऐंसे होते हैं

भमावत 
थूर, उदयपुर , मेवाड़
मो. 0917891529862

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